पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१४२

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कैसे ॐ धरे सरीरु सांत रस जैसे हैं बैठे सोह कामरिषु एम पारवती भल अवसरु जानी ॐ गईं सम्भु पहि' मातु भवानी रानी कामदेव के शत्रु शिवजी महाराज वहाँ बैठे हुए ऐसे शोभित हो रहे थे कि । मानो शांत-रस ही शरीर धारण करके बैठा हो । सुअवसर समझकर माता पार्वती राम) उनके पास गई। जानि प्रिया दरु अति कीन्हा ॐ वाम भाग असनु हर दीन्हा एम समीप हरपाई ॐ पूरव जन्म कथा चितु आई । बैठीं सिव अपनी प्यारी ( अर्धाङ्गिनी ) जानकर शिवजी ने उनका बहुत आदर किया और बैठने को अपनी बाईं ओर आसन दिया । पार्वतीजी प्रसन्न होकर * शिवजी के पास बैठ गईं। उनके मन में पिछले जन्म की कथा याद आ गई। पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी ॐ विहँसि उमा वोली प्रिय वानी कथा जो सकल लोक हितकारी 3 सोई पूछन चह सैलकुमारी । स्वामी के हृदय में अपने ऊपर बहुत प्रेम समझकर पार्वतीजी हँसकर (म) * मीठे वचन बोलीं । जो कथा सब लोगों का हित करने वाली है, उसे ही पार्वती । पूछना चाहती हैं। विस्वनाथ मम नाथ पुरारी ॐ त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी र अरु अचर नाग नर देवा ॐ सकल करहिं पद पंकज सेवा ए हे मेरे नाथ ! हे विश्वनाथ ! हे त्रिपुरारी ! आपकी महिमा तीनों लोकों में से विख्यात है। चर, अचर, नाग, मनुष्य और देवता सब आपके चरणकमलों की सेवा करते हैं। - प्रलु सस सवेश्य सिव सक्कल झला गुल धास । जोग दयाल वैश्य निधि लत जपतरू लाम।१०७ शुभ हे प्रभो ! आप समर्थ हैं, सर्वज्ञ हैं, शिव हैं, सब कला और गुणों के धाम ए हैं और योग, ज्ञान तथा वैराग्य के भण्डार हैं । आपका नाम शरणागतों के लिये है कल्पवृक्ष के समान है। । जौं मोपर प्रसन्न सुखरासी की जानिअ सत्य मोहि निज दासी एन तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना $ कहि रघुनाथ कथा विधि नाना १. पास ।।