पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११५

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११२ अचान ' *. क्षोभ पैदा करे । तब हम जाकर शिवजी के चरणों पर सिर रखकर ज़बरदस्ती के म उनका विवाह करा देंगे। ॐ एहि विधि भलेहिं देवहित होई ॐ सत अति नीक कहई सब कोई । अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू ॐ प्रगटेउ : विषमवान झखकेतू इस तरह से भले ही देवताओं का कल्याण हो सकता है। सबने कहाएम यह सम्मति तो बहुत अच्छी है। फिर देवों ने बड़े प्रेम से स्तुति की। तब पाँच बाण. धारण करने वाला और मछली के चिन्हयुक्त ध्वजा वाला कामदेव प्रकट हुआ। । सुरन्ह कही निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार। | संभु बिरोध न कुसल मोहिं बिहँसिकहेउअसमार'८३ हैं देवताओं ने कामदेव से अपनी सारी विपत्ति कह सुनाई। सुनकर कामदेव ॐ ने मन में विचार किया और फिर हँसकर कहा-शिबजी के साथ विरोध करने में हैं राम) मेरी कुशल नहीं है। होते तदपि करब मैं काजु तुम्हारा ॐ स्वति कह परम धरम उपकारा ए पर हित लागि तजइ जो देही ॐ संतत संत प्रसंसहिं तेही . तो भी मैं तुम्हारा काम तो करूंगा; क्योंकि वेदों ने कहा है-परोपकार परमधर्म है । जो दूसरे के हित के लिये अपना शरीर छोड़ता है, सज्जन सदा उसकी बड़ाई करते हैं। * अस कहि चलेउ सबहिं सिरुनाई ॐ सुमन धनुष कर सहित सहाई , चलत मोर अस हृदय विचारा ॐ सिव विरोध ध्रुव मनु हमारा ॐ ... इतना कह और सबको सिर नवाकर कामदेव अपना पुष्प का धनुष हाथ हैं। से में लेकर अपने सहायक वसन्त के साथ चला। चलते समय कामदेव ने अपने के मन में यह सोचा कि शिवजी के साथ विरोध करने में मेरा मरण निश्चित है। एन) तंव आपन प्रभाउ विस्तारा ॐ निज वस कीन्ह सकल संसारा सु कोपेउ जवहिं वारिचर केतू $ छन महँ मिटे सकल सुतिसेतू । तब उसने अपना प्रभाव फैलाया और सारे संसार को अपने वश में कर छू लिया। जिस समय उस मछली के चिह्न की ध्वजावाले कामदेव ने कोप किया, १. कामदेव । २. सदा । ३. निश्चय ।