पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११२

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१६ - बाल-झाई - १०६ दूषन रहित सकल गुन रासी ॐ श्रीपति पुर वैकुण्ठ निवासी अस बर तुम्हहिं मिलाउच आनी ॐ सुनत विहँसि कह वचन भवानी वह दोषों से रहित और सारे गुणों की राशि, लक्ष्मी का स्वामी और बैकुण्ठपुरी का रहने वाला है। ऐसे वर को लाकर हम तुमसे मिलादेंगे। यह सुनकर भवानी हँसकर बोलींसत्य कहेहु गिरिव तनु एहा ॐ हठ न छूट छुटै वरु देहा कनक पुनि पषान ते होई % जारेहुँ सहजुन परिहर सोई | आपने यह सच ही कहा है कि मेरा यह शरीर पर्वत से उत्पन्न हुआ है। * इसलिये हठ तो नहीं छूटेगा, देह भले ही छूट जाय । सोना भी तो पत्थर से | ॐ उत्पन्न होता है; पर वह तपाने पर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़तः । । नारद वचन न मैं परिहरॐ ॐ वसउ भवन उजरउ नहिं डरऊँ : गुर के बचन प्रतीति न जेही ॐ सपनेहु सुगम न सुख सिधि तेही । मैं नारद मुनि के वचनों को नहीं छोडूंगी, चाहे घर वसे, या उजड़े, मैं । । इससे नहीं डरती । जिसको गुरु के वचनों पर विश्वास नहीं है, उसको सुख । और सिद्धि स्वप्न में भी सुगम नहीं होती ।। म) - महादेव अवगुन वन विष्णु सकल गुल धाम् ।। जेहि कर भलु रम जाहि सन तेहि तेही सन मम॥२०॥ माना कि महादेवजी अवगुणों के घर हैं और विष्णु भगवान् सारे गुणों की खान हैं। पर जिसका मन जिसमें रम गया है, उसको तो उसी से काम है। जौ तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा ॐ सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा रामे अब मैं जनसु संभु हित हारा ॐ को गुन दूपन करै विचारा _ हे मुनीश्वरों ! जो आप पहले मिलते, तो मैं आपका उपदेश सिर चढ़ाकर राम) सुनती । अब तो मैं अपना जन्म शिवजी के लिये हार चुकी । गुण-दोषों का | विचार अब कौन करे ? राम जौ तुम्हरे हठ हृदयँ विसेषी ॐ रहि न जाइ विनु किए बरेपी' । । तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं ॐ वर कन्या अनेक जग माहीं १. वर रक्षा (बरच्छा), विवाह की बातचीत ।