पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

()":"\/

१०८ छ भनस ६.३ ॐ नारद सिख जे सुनहिं नर नारी $ अवसि होहिं तजि भुवन भिखारी राम मन कपटी तन सज्जन चीन्हा ॐ पु सरिस सब ही चह कीन्हा । जो स्त्री-पुरुष नारद की सीख सुनते हैं, वे घर-बार छोड़कर अवश्य ही है भिखारी हो जाते हैं। उनका मन तो कपटी है; पर शरीर पर सज्जनों के-से ए चिन्ह हैं। वे अपने समान सभी को ( आवारा ) बनाना चाहते हैं। , [ व्याज-स्तुति अलंकार ] एम् तैहि के बचन मानि, विस्वासा ॐ तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा ॥ निर्गुन निलज कुबेष कंपाली अकुल अगेह दिगंबर ब्याली उनके वचनों पर विश्वास करके तुम ऐसा पति चाहती हो, जो स्वभाव ही से उदासीन, गुणहीन, निर्लज्ज, बुरे वेष वाला, कपालों की माला पहनने वाला, के कुलहीन, घर-द्वार-हीन, नंगा और साँपों को लपेटे रखने वाला है। कहहु कवन सुख अस बरु पाएँ ॐ भल भूलिहु ठग के बौराएँ । । पंच कहे सिव, सती बिवाही ॐ पुनि अवडेरि' मरायेन्हि ताही ऐसे वर के मिलने से कहो, तुमको क्या सुख होगा ? तुम ठग (नारद) के के बहकाने में खूब भूलीं । पहले पंचों के कहने से शिव ने सती के साथ व्याह । किया था; पर फिर उसे त्याग कर मरवा डाला । हैं । अब सुख सोवत सोचु नहिं भीख माँगि भव खाहिं।। सहज एकाकिन्ह कै भवन कबहुँ कि नारि खटाहिँ ७६ अब शिव सुख से सोते हैं; उनको कोई चिन्ता नहीं रही। भीख माँगकर में खाते हैं। भला, ऐसे जन्म से अकेले के घर में भी कभी स्त्रियाँ टिक सकती हैं। कुँ [ व्याज-स्तुति अलंकार ]. में अजहूँ मानहु कहा हमारा ॐ हम तुम्ह कह कर नीक बिचारा ॐ एम अति सुन्दर सुचि सुखद् सुसीला ॐ गावहिं वेद जासु जस लीला अब भी हमारा कहा मानो। हमने तुम्हारे लिये अच्छा वर विचारा है। । वह बहुत ही सुन्दर, पवित्र, सुखदाई और सुशील है, जिसके यश की लीला वेद । * गाते हैं।

१. त्यागकर । २. टिक सकती हैं।