पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/११०

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= ॐ बोले मुनि सुनु सैलकुमारी के करहु कवन कारन तषु भारी । केहि अवरोधहु का तुम्ह चहहू की हम सन सत्य मरमु किन कहहूं मुनि बोले--हे शैलकुमारी सुनो, किस लिये तुम इतना वड़ा तप कर रही है। । हो ? तुम किसकी आराधना कर रही हो ? और क्या चाहती हो ? तुम हमसे । अपना भेद सत्य-सत्य क्यों नहीं कहती हो ? सुनत रिषिन्ह के बचन भवानी ॐ बोली गूढ़ मनोहर वानी कहत वचन मनु अति सकुचाई छ हँसिहहु सुनि मारि जड़ताई | ऋषियों के बचन सुनकर भवानी मन को हरने वाली मर्मभरी वाणी बोलीं-बात कहते हुए मन बहुत सकुचाता है, आप लोग मेरी मूर्खता की बातें | सुनकर हँसेंगे। राम मनु हठ परा न सुनइ सिखावा ॐ चहत वारि पर भीति उठावा सुरु नारद कहा सत्य सोइ जाना ॐ विनु पंखन हम चहहिं उड़ाना देखहु मुनि अविवेक हमारा ॐ चाहि सदा सिवहिं भरतारा मन ने हठ पकड़ लिया है। वह उपदेश नहीं सुनता । पानी पर बह दीवार खड़ी करना चाहता है। नारद जी ने जो कहा है, उसको सत्य मानकर में बिना पंख के उड़ना चाहती हूँ। हे मुनियो ! मेरा अज्ञान तो देखिये कि में सदा शिव ही को पति बनाना चाहती हैं। [ ललित अलंकार ] का ऊ सुनत बचन विहँसे रिचय गिरिसंभव तव देह ।। = राम - नारद कर उपदेसु सुनि कहहु बसेउ को गेह ।।७८॥ पार्वती की बात सुनकर ऋषि लोग हँसे और बोले-हो तो तुम पर्वत की पुत्री ही । भला, कहो तो नारद का उपदेश सुनकर कौन घर में बसा या किसकी - घर बसा है ? दच्छसुतन्ह उपदेसिन्हि जाई के तिल फिरि भवन न देखा शाई चित्रकेतु कर घरु उन घाला ॐ कनककसिषु कर पुनि अस हाला । ॐ नारद जी ने दक्ष के पुत्रों को उपदेश दिया था, सो उन्होंने लौटकर घर म) देखा ही नहीं। उन्हींने चित्रकेतु का घर चौपट किया और हिरण्यकशिपु की । | भी यही हाल हुआ ।