पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१०४

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वाल : ॐ अस कहि परी चरन धरि सीसा के वोले सहित सनेह गिरीसा । एमो वरु पावक प्रगटइ ससि माहीं ॐ नारद वचनु अन्यथा नाहीं गम यों कहकर पार्वती की माता ने पति के चरणों पर सिर रख दिया। तव । राम हिमवान् ने स्नेह से कहा-चाहे चन्द्रमा में अग्नि प्रकट हो, पर नारदजी के वचन झूठे नहीं हो सकते ।

  • प्रिया सोच परिहरहु सब खुमिरहु श्रीभगवान् । होम > पारबतिहि निरसयेउ'जेहि सोइ करिहि कल्याना७१। उनी

हे प्रिये ! तुम सब चिन्ता छोड़कर श्रीभगवान् का स्मरण करो। जिन्होंने पार्वती को रचा है, वे ही कल्याण करेंगे। अब जौ तुम्हहि सुता पर लेह छ तो अस जाइ सिखावनु देह , ॐ करइ सो तषु जेहि मिलहिं महेसू ॐ श्रीन उपाय न मिटिहि कलेना । अब जो तुम्हें अपनी पुत्री पर स्नेह है, तो जाकर उसको ऐसी शिक्षा दो कि वह ऐसा तप करे, जिससे शिवजी मिलें । दूसरे उपाय से दुःख दूर । ॐ नहीं होगा । सगर्भ सहेतु कै सुन्दर सब गुन निधि वृषकेतु है ॐ नारद बचन एम अस बिचारि तुम तुजह असंका ॐ सवाहिँ भाँति संकरु अकलंका सुमो नारदजी के वचन रहस्य से युक्त और कारण-सहित हैं। शिवजी समस्त । राम सुन्दर गुणों की खान हैं। यह विचारकर तुम मिथ्या भय को दूर करो । एम) । शिवजी सब तरह से निष्कलङ्क हैं। । सुनि पति बचन हरषि मन माहीं ॐ गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं उमहि विलोकि नयन भरि वारी ॐ सहित सनेह गोद वैठारी पति के वचन सुनकर, मन में प्रसन्न होकर, मैना उठकर तुरन्त पार्वती के पास गईं। पार्वती को देखकर और आँखों में आँसू भरकर, प्यार के साथ उन्होंने के ॐ उसे गोद में बिठा लिया। • राम चाहिं चार लति उर लाई ॐ गदगद कंठ न कछु कहि जाई जगत मातु सर्बग्य भवानी ॐ मातु सुखद बोलीं मृदु बानी १. रचा । २. पास ।।