पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९८

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प्रथम सोपान, बालकाण्डे । चौ०-यहि बिधि सब संसय करि दूरी । सिर धरि गुरु पद पङ्कज धूरी ॥ पुनि सबही प्रनवउँ कर जोरी । करत कथा जेहि लाग न खोरी ॥१॥ इस प्रकार सब सन्देह दूर कर के और गुरु महाराज के चरण-कमलों की धूल सिर पर धारण कर फिर सभी को हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूँ जिससे कथा निर्माण करने में दोष न लगे॥१॥ सादर सिवहि नाइ अब माथा । बरनउँ बिसद राम गुन गाथा ॥ सम्बत सोरह से इकतीसा । करउँ कथा हरि पद धरि सीसा ॥२॥ अब श्रादर-पूर्वक शिवजी को मस्तक नवा कर रामचन्द्रजी के निर्मल गुणों की कथा वर्णन करता हूँ। लम्बत् १६३१ विक्रमान्द में भगवान के चरणों में सिर रख कर कथा निर्माण करता हूँ ॥२॥ नौमी भामबार मधु मासा । अवधपुरी यह चरित प्रकासा । जेहि दिन राम जनम सुति गावहिँ । तीरथ सकल तहाँ चलि आवहि ॥३॥ नौमी तिथि, मङ्गल वार, चैत्र के महीने में अयोध्यापुरी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ। जिसको रामचन्द्रजी के जन्म का दिन वेद गाते हैं और सम्पूर्ण तीर्थ उस दिन वहाँ चल कर आते हैं ॥३॥ ग्रन्थ की जन्म-कुण्डली कही गई है। मि० चैत्र शुक्ल । मङ्गलवार सम्बत १६३१ विक्रमान्द में ग्रन्थारम्भ हुआ। असुर नाग खग नर, मुनि देवा । आइ करहिँ रघुनायक सेवा । जन्म महोत्सव रचहिँ सुजाना । करहिं राम कल कीरति गाना un दैत्य, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता पाकर रधुनाथजी की सेवा करते हैं, सज्जन लोग जन्म का महोत्सव रच कर रामचन्द्रजी की सुन्दर कीर्ति का गान करते हैं ॥४॥ दो-मज्जहि सज्जन बन्द बहु, पावन जपहिँ राम धरि ध्यान उर, सुन्दर स्याम सरीर ॥३४॥ पवित्र सरयूनदी के जल में अनेक सज्जन-समूह स्नान करते हैं और 'सुन्दर श्याम शरीर रामचन्द्रमी का, हृदय में ध्यान धर कर नाम जपते हैं ॥ ३४॥ चौ०-दरस परस मज्जन अरु पाना। हरई पाप कह बेद पुराना॥ नदी पुनीत अमित महिमा अति । कहि न सकइसारदाबिमल मति ॥१॥ घेद-पुराण कहते हैं कि जो दर्श, स्पर्श, स्नान और पान से पापों को हर लेती है. उस पवित्र नदी की बहुत बड़ी महिमा है, जिसको निमल बुद्धिवाली सरस्वती भी नहीं कह सकती॥१॥ सरजू नीर।