पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९७८

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षष्ठ सोपान, लङ्काकाण्ड । ९०३ करनी करते हैं । टाँग पकड़ कर समुद्र में फेश देते हैं, मगर, साँप और मच्छ उन्हें पकड़ कर खाते हैं ॥४॥ दो-कछु मारे कछु घायल, कछु गढ़ चढ़े पराइ । गर्जहिँ मर्कट भालु लट, रिपु-दल-बल बिचलाइ ॥४॥ कुछ मारे गये; कुछ घायल हुए और कुछ भाग कर किले पर चढ़ गये। इस तरह शत्रु की.सेना का बल विचलित करके योद्धा धन्दर और भालू गर्जना करते हैं ॥४॥ धानर भालुओं का विजयी हो कर गर्जन करना सबंग है कि वानरी सेना रणभूमि में डटी है यदि शत्र दल शाना चाहे तो प्रावे । सभा की प्रति में 'कछु गढ़ चले पराइ' पाठ है। चौ-निसा जानि कपि पारिउ अनी । आये जहाँ काखला-धनी ॥ रोम-कृपा-करि चितवा जबहीं। भये विगत-झम बानर तत्रहीं॥१॥ रानि हुई जान कर चारों सेनाओं के बन्दर जहाँ कोशलेन्द्र भगवान हैं वहाँाये राम- चन्द्रजी ने ज्योंहो कृपा करके देखा त्योंही बन्दर थक्षावर रहित हो गये ॥१॥ उहाँ दसानन सचिव हँकारे । लम सन कहेसि सुभट जे मारे ॥ आधा कटक कपिल्ह सङ्घारा । कहहु बेगि का करिय बिचारा ॥२॥ वहाँ रावण ने मन्त्रियों को बुला कर जो शुरवीर 'मारे गये थे उनके नाम सब से कह सुनाया। आधी सेना तो वानरों ने संहार कर डाली, जल्ही यहो कौन सो विचार (तत्व- निर्णय) करना चाहिए ॥२॥ माल्यवन्त अति जरठ निसाचर । रावन-मातु-पिता मन्त्रीबर ॥ बाला बचन नीति अति-पावन । सुनहु तात कछु मार सिखावन ॥३॥ बहुत ही वृद्ध माल्यवान राक्षस जो रावण की माता का पिता अर्थात उसका नाना और श्रेष्ठ मन्त्री था। वह अत्यन्त पविन नीति-युक्ति वचन बोला-हे तात ! कुछ मेरा सिखावन सुनिए ॥३॥ जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिँ बखानी॥ बेद-पुरान जासु जस गावा । रोम बिभुख सुख काहुन पावा ॥४॥ जब से श्राप सीता को हर कर ले आये हैं तब से इतने असगुन हो रहे हैं कि वे कहे 'नहीं जा सकते । जिनका यश घेद पुराण गाते हैं उन रामचन्द्र से विमुख रह कर किसी ने सुख नहीं पाया ॥४॥ गुटका में 'वेद पुरान जासु जस गायो, राम विशुख काहुन सुख पायो' पाठ है। दो०--हिरन्याक्ष धाता सहित, मधु कैटम बलवान । जेहि मारे साई अवतरेउ, कृपासिन्धु भगवान ।। हिरण्याक्ष को भाई (हिरण्यकशिपु) के सहित और बलवान मधु-कैटभको जिन्दा ने मारा, वे ही कपासागर भगवान अवतरे हैं।