पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९७

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रामचरित-मानस । ४६ का भला करने में साधु लोगों के समान है । भक्तों के मन रूपी मानसरोवर में हंस के तुल्य और पवित्रता में गङ्गाजी की लहरों के समान है ॥ ७ ॥ दो-कुपथ कुतर्क कुचाल कलि, कपट दम्म पाखंड। दहन राम गुनग्राम जिमि, ईधन अनल प्रचंड ॥ कुमार्ग, वितण्डावाद, अधम अाचरण, विग्रह, कपट, घमण्ड और पाखण्ड रूपी सूनी लकड़ी या कण्डा को जलाने के लिए रामचन्द्रजी का गुण-ग्राम ऐसा है जैसे प्रज्वलित (धध. कती हुई तीब ) अग्नि। रामचरित राकेस कर, सरिस सुखद सव काहु। सज्जन कुमुद चकोर चित, हित विसेष बड़ लाहु ॥३२॥ रामचन्द्रजी का चरित्र पूर्ण चन्द्र की किरणों के समान सय को सुख देनेवाला है, पर सज्जन रूपी कूई वेश और चकोरों के मन को विशेष हितकारी एवम् लाभ की वस्तु है ॥३२॥ चौ-कीन्ह प्रस्न जेहि भाँति भवानी । जेहि विधि सङ्कर कहा बखानी॥ सो सब हेतु कहब मैं गाई । कथा प्रबन्ध विचित्र धनाई १॥ जिस तरह पार्वतीजी ने प्रश्न किया और जिस प्रकार शकर भगवान ने बयान कर कहा, वह सब कारण मैं विचित्र कथा-प्रवन्ध रच कर गान करके कहंगा ॥१॥ जेहि यह कथा सुनी नहिं होई । जनि आचरज करइ सुनि साई ॥ कथा अलौकिक सुनहिँ जे ज्ञानी । नहिँ आचरज करहिं अस जानी ॥२॥ जिसने यह कथा न सुनी हो वह इसे सुन कर आश्चर्य न करे; क्योंकि जो शानवान है, वे अपूर्व कथा को सुनते हैं और ऐसा समझ कर विस्मय नहीं करते ॥२॥ राम कथाकै मिति जग नाही । अस प्रतीति तिन्ह के मन माहाँ । नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सतकोटि अपारा ॥३॥ रामचन्द्रजी की कथा का संसार में हद नहीं, उनके मन में ऐसा विश्वास रहता है। अनेक प्रकार रामावतार हुए और अनन्त कोटि अपार रामायण (बने) हैं ॥३॥ कपल भेद हरिचरित सुहाये । भाँति अनेक मुनीसन्ह गाये ॥ करिय न संसय अस उर आनी । सुनिय कथा सादर रति मानी ॥४॥ भगवान् के सुहावने चरित्र को कल्प-भेद के अनुसार मुनीनश्वरों ने अनेक तरह से गान किया है। ऐसा मन में रख कर सन्देह न कीजिए, आदर के साथ प्रीति मान कर कथा सुनिए ॥४॥ दो-राम अनन्त अनन्त गुन, अमित कथा विस्तार । सुनि आचरज न मानिहहिँ, जिन्ह के बिमल विचार ॥३३॥ रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उनके गुण अपार हैं और कथा का विस्तार अपरिमेय है । जिनके हृदय में निर्मल विचार है वे सुन कर आश्चर्य्य न मानेगे ॥ ३३ ॥