पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८५८

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ORO ७ पञ्चम सोपान, सुन्दरकाण्ड । लेती हैं। कही पर्वत के समान विशाल शरीरवाले अत्यन्त बलवान मल्ल गर्जते हैं। वे अनेक अखाड़ों में भिड़ रहे हैं और बहुत तरह से एक दूसरे को डाँटते हैं ॥ २॥ करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन, नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज, खल निसाचर अच्छहीं। एहि लागि तुलसीदास इन्ह की, कथा कछुयक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि, त्यागि गति पइहैं सही ॥३॥ करोड़ों विकराल शरीरवाले योद्धा बड़े यत्न के साथ चारों ओर से नार की रख. वाली करते हैं। कही दुष्ट राक्षस भैंसा, मनुष्य, गैया, गदहा और बकरे श्रादि जीवों को भक्षण कर रहे हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि इनकी कथा हमने इसलिए कुछ थोड़ी सी कही है कि ये लव रघुनाथजी के बाण-रूपी तीर्थ में शरीर त्याग कर शुद्ध गति (मोक्ष) पायेंगे॥३॥ हमने इन राक्षसों को वृत्तान्त कुछ थोड़ा सा कहा है, हेतु-सूचक बात कह कर संक्षेप में कहने के कारण का समर्थन करना कि रघुवीर के वाण तीर्थ में शरीर त्याग कर ये सव मोक्ष को प्राप्त होंगे। इससे विस्तार की आवश्यकता नहीं 'काव्यलिङ्ग अलंकार' है। दो-पुर रखवारे देखि बहु, कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरउँ निसि, नगर करउँ पइसार ॥३॥ बहुत से नगर-रक्षकों को देख कर हनुमानजी ने मन में विचार किया कि मैं अत्यन्त छोटा रूप धारण करके रात्रि को नगर में प्रवेश करूँ॥३॥ दिन को लङ्कापुरी में घुसना काठन है, इसे शङ्का के निवारणार्थ हनूमानजी का मन में यह विचारना कि रात्रि में सुंदर रूप से पैठना. ठीक होगा 'वितर्क सञ्चारी भाव' है। चौ०-मसक समान रूप कपि धरी । लङ्कहि चलेहु सुमिरि नरहरी । नाम लडिनी एक निसिचरी । से कह चलेसि मोहि निन्दरी॥१॥ मसा के समान बन्दर का रूप धारण करके मनुष्यों में सिंह ( रामचन्द्रजी) का स्मरण कर लका की ओर चले। एक लकिनी नाम की राक्षसी ( जो शहरपनाह के फाटक की रक्षक थी, उस ) ने कहा कि तू मेरा निरादर करके चला जा रहा है ? ॥१॥ यहाँ लोग शङ्का करते हैं कि मसा के बराबर रूप बना कर मुद्रिका कैसे ली? उत्तर-जिन को मसा के समान रूप कर लेने की शक्ति है, उन्हें मुंदरी लिये रहना कौन से अरश की बात है ? मसा के समान रूप कहने से तात्पर्य अत्यन्त छोटे रूप का है। अध्यात्म रामायण में केवल छोटा रूप लेना लिया है और वाल्मीकीय में भी अपने स्वाभाविक रूप से बिल्कुल छोटा बिल्ली के बराबर बन्दर का रूप लेने का उल्लेख है। इतना लघु रूप किया जिससे अँगूठी पेट में लिये रहे, इसलिये यह शङ्को व्यर्थ है। योरप में नारवे प्रदेश के उत्तरी भाग में अब भी गौरैया पक्षी के बराबर मसा होते हैं। यदि यहाँ के निवासी रात में खुली