पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७६४

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७०३ तृतीय सोपान, अरण्यकाण्ड । भ्राता पिता पुत्र उरगारी । पुरुष मनोहर निरखत नारी। हाइबिकल सक मनहिं न रोकी। जिमि रवि-मनि द्रव रचिहि बिलोकी॥३॥ कागभुसुण्डजी कहते हैं-हे पनगारि ! चाहे भाई हो, पिता हो अथवश पुत्र हो, सुन्दर पुरुप को देखते ही खियाँ विकल होकर मन को नहीं रोक सकती, (वे काम भाव से ऐसी आसक्त हो जाती हैं। जैसे सूर्य को देख कर सूर्यकान्त मणि पसीजने लगती है ॥२॥ समान अवस्थावाला भाई के समान है, अधिक वयवाला पिता और छोटी उमर का पुरुप पुत्र के बराबर है। कोई भी मनोहर पुरुष हो, स्त्रियाँ देखते ही मन को न रोक कर विकल हो जाती हैं, तभी तो जन्म की विधवा-वृद्धा सूर्पणखा व्याकुल हो उठी ! रुचिर रूप धरि प्रनु पहिं जाई । बोली बचन बहुत भुसुकाई ॥ तुम्ह सम पुरुष न मा सम नारी । यह संजोग विधि रचो बिचारो॥४॥ (माया से)लन्दर रूप धारण कर प्रभु रामचन्द्रजी के पास जा कर बहुत मुस्कुराती हुई वचन बोली । आप के समान मनोहर पुरुष और मेरे समान स्त्री (कोई नहीं है) यह संयोग ब्रह्मा ने सोच कर बनाया है ॥४॥ यथायोग्य का लज वर्णन 'प्रथम सम अलंकार है। मम अनुरूप पुरुण जग माहीं । देखेउँ खोजि लोक तिहुँ नाहीं ॥ ता तें अब लगि रहिउँ कुमारी। मन माना कछु तुम्हहिँ निहारी ॥३॥ जगत में मेरे योग्य कोई पुरुष नहीं है, मैंने तीनों लोकों में खोज कर देखा। इससे अब तक कुधारी रही हूँ, तुम्हें देख कर कुछ मन चाहा है ॥ ५॥ तीनों लोकों में खोज डाला, मेरे योग्य सुन्दर पुरुष संसार में नहीं है। इस मिथ्या बात को सत्य करने के लिये दूसरी झूठी बात कहना कि इसी से अब तक बिना व्याही रह गई 'मिथ्याध्यवसित अलंकार' है। सीतहि चितइ कही प्रभु बाता। अहइ कुमार मार लघु माता । गइ लछिमन रिपुनगिनी जानी । प्रभु बिलोकि बोले मृदु बानी ॥६॥ सीताजी को देख कर प्रभु रामचन्द्रजी ने बात कही कि मेरा छोटा भाई कुंवारा है। यह सुनकर लक्ष्मणजी के पास गई, वे उसको शत्रु को पहन जान कर ,प्रभु की ओर देख कोमल वाणी से वाले ॥६॥ लक्ष्मणजी ने स्वामी की ओर देखां, उनका रुख ताड़ कर शुर्पणखा से विनोद-पूर्ण मधुर वचन वाले । यह 'पिहित और सूक्ष्म अलंकार' का लन्देहखकर है। सीताजी की ओर निहारने में कई प्रकारको व्यझनामूलक गूढ़ ध्वनि है । (१) शूर्पणखाने कहा है कि तीनों लोकों में मेरे घरावर सुन्दर स्त्री कोई नहीं है, इस पर सीताजी की ओर निहार कर रामचन्द्रजी सूचित करते हैं कि इनको देखा तुझसे सहनगुनी बढ़ कर ये सुन्दरी हैं । (२) शूर्पणखा को देख कर रामचन्द्रजी सीताजी की ओर निहारने लगे, उससे उपेक्षा भाव प्रकट कर यह