पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७४६

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तृतीय सोपान, अरण्यकाण्ड । धीरज धरम मित्र अरु नारी। आपदकाल परखियहि चारी ॥ रोग-बस जड़ धन-हीना। अन्ध बधिर क्रोधो अतिदीना ॥४॥ धीरज, धर्म, मिन और स्त्री चारों की आपत्काल में प्रतीक्षा करनी चाहिये अर्थात् वि. पत्ति में भी इनका त्याग न करे । बूढा, रोग के अधीन, मुर्ख, दरिद्रो, अन्धा, बहिरा, क्रोधी और अत्यन्त दीन ॥४॥ आपदकाल परखियहि चारी, इसका अर्थ कुछ लोग इस प्रकार भी करते हैं-"विपत्ति काल में इन चारों की परीक्षा करनी चाहिए अर्थात् प्रापद के समय जो साथ रहे वही धैर्य, वही धर्म वही मिन और वही स्त्री हैं। ऐसेहु पति कर किय अपमाना । नारि पाव जमपुर दुख नाना । एकई घरस एक ब्रत नेमा । काय बचन मन पति पद प्रेमा ॥५॥ ऐसे पति का भी अपमान करने से स्त्री यमपुरी में नाना प्रकार का दुःख पाती है। त्रियों के लिए एक ही धर्म एक ही प्रत और एक ही नियम है कि शरीर, वचन एवम् मन से पति के चरणों में प्रीति को ॥५॥ जग पतिव्रता चारि बिधि अहहीं। बेद पुरान सन्त सत्र कहहौं । उत्तम के अस बस मन माहीं । सपनेहुँ आन पुरुष जग नाही ॥६॥ वेद, पुराण और सज्जन संब कहते हैं कि संसार में पतिव्रता चार प्रकार की हैं। उत्तम के मन में ऐसा रहता है कि जगत् में दूसरा पुरुष स्वप्न में भी नहीं है ॥६॥ ऊपर चार प्रकार उत्तम. मध्यम, निकृष्ट और अधम पतिव्रता कह कर क्रम से उनके लक्षण गिनाते हैं। सभा की प्रति में जग पतिव्रता के आगे एक दोहा भी है, पर वह अनावश्यक और दोपक प्रतीत होता है। जब नीचे की चौपाइयों में कम से चारों के लक्षण वर्णन हैं, तब दोहा जो पुनशक्ति दोष लाता है उसकी कोई जरूरत नहीं है। इसी प्रकार जयन्त के भागने में 'जिमि जिमि भाजत नासुत, व्याकुल अति दुख दीन इत्यादि दोहा है। ये दोनों दोहे गुटको में नहीं हैं और प्रसङ्ग में मिलते नहीं, इससे दोपक जान कर हमने छोड़ दिया है। मध्यम पर-पति देखइ कैसे । भ्राता पिता पुत्र निज जैसे ॥ धरम बिचारि समुझि कुल रहई । सो निकृष्ट-तिय खुति अस कहई ॥७॥ मध्यम पराये पुरुष को कैसे देखती है जैसे अपना भाई, पिता और पुत्र । जो धर्म को विचार और कुल को समझ कर रह जाती है, वेद ऐसा कहती है कि वह निकृष्ट स्त्री बिनु अवसर भय त रह जाई । जानहु अधम नारि जंग साई । पति-बज्जक पर-पति रति करई । रौरव-नरक कलप सत परई ॥८॥ बिना समय के जो डर से रह जाती है अर्थात् पर-पुरुष से मिलने की इच्छा की; किन्तु मौका न मिलने के कारण भय से बच जाती है, जगत् में उसको अधम पतिव्रता स्त्री जाना। है ॥७॥