पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६८

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॥ प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १७ आखर अरथ अलंकृत नाना । छन्द प्रबन्ध अनेक विधानां ॥ भाव-भेद रस-भेद अपारा । कबित दोष-गुन बिबिध प्रकारा ॥५॥ अक्षर, अर्थ, नाना भाँति के अलंकार और छन्द रचना की अनेक रीति हैं । भाव (अनुभाव, सञ्चारी आदि के ) भेद और ( शृङ्गारादि ) रसों के मर्म तथा काव्य के गुण-दोष अनेक प्रकार के हैं ॥५॥ कबित बिबेक एक नहिं मारे । सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे ॥६॥ काव्य का ज्ञान एक भी मुझ में नहीं है, इस बात को मैं कोरे काग़ज़ पर लिख कर सच कहता हूँ ॥६॥ गुण का कार्पण्य दिखा कर कवि का भाव अपनी नम्रता व्यजित करने का है। दो-भनिति मेरि सब गुन रहित, विस्व विदित गुन एक । सो बिचारि सुनिहहिँ सुमति, जिन्ह के बिमल बिबेक ॥ मेरी कहनूति सब गुणों से रहित है, पर जगद्विखयात अद्वितीय गुण [इल में राम नाम ] है, यह विचार कर अच्छी बुद्धिवाले, जिन्हें निर्मल शान है, सुनेंगे ॥६॥ चौ०-एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान-चुति-सारा ॥ मङ्गल-भवन अमङ्गल-हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥१॥ इस में अत्यन्त पवित्र वेद पुराणों का सार [तत्व] रघुनाथजी का श्रेष्ठ नाम है, जो कल्याण का स्थान और अमहलों का हरनेवाला है, जिसको पार्वती के सहित शिवजी जपते हैं। भनिति बिचित्र सुकवि कृत जोऊ । राम नाम बिनु साह न सोऊ ॥ बिपु-बदनी सब भाँति सँवारी । साह न बसन बिना बर नारी ॥२॥ जो कविता अच्छे कवि की की हुई विलक्षण ही क्यों न हो, वह भी बिना राम नाम के . शोभित नहीं होती । सुन्दर चन्द्राननी स्त्री सब तरह का शृङ्गार करने पर भी बिना वस्त्र के नहीं सोहती ॥२॥ पूर्वार्द्ध वाक्य उपमेय रूप और उत्तरार्द्ध वाक्य उपमान रूप है । विना राम नाम के कविता और बिना वस्त्र के सुन्दर शङ्गारित तरुणी, दोनों का एक धर्म 'साह न' कथन होना 'प्रतिवस्तूपमा अलंकार' है ।। सघ गुन रहित कुकबि कृत बानी । राम नाम जस अङ्कित जानी ॥ सादर कहहिँ सुनहि बुध ताही । मधुकर सरिस सन्त गुन-ग्राही ॥३॥ सम्पूर्ण गुणों से खाली कुकवि की ही बनाई कविता क्यों न हो, पर राम-नाम के यश से वर्णित जान कर विद्वान् लोग आदर के साथ उसको कहते और सुनते हैं, क्योंकि सन्तजन भैरे के समान गुण ग्रहण करनेवाले होते हैं ॥३॥ ।