पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६५८

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । ५९७ सीस-जटा कटि-मुनि-पट बाँधे । तून कसे कर सर धनु-काँधे । बेदो पर मुनि-साधु-समाजू । सीय सहित राजत रघुराजू ॥३॥ उनके सिर पर जंटा है और कमर में मुनियों के वस्त्र से कस कर तरकस पौधे हैं, हाथ में धाण र कन्धे पर धनुष है। सीताजी के सहित मुनि और साधु भण्डली के बीच चबूतरे पर रघुनाथजी विराजमान हैं ॥३॥ अलकल-नसन जटिल तनु स्यामा । जनु मुनि बेष कीन्ह रसि कामा ॥ कर कमलनि धनु सायक फेरत । जिय की जरनि हुरत हाँसि हेरते ॥४॥ बकल का वस्त्र, जटाधारी और श्याम शरीर ऐसे मालूम होते हैं मानों रति तथा काम- देव ने मुनि का वेष बनाया हो । कर-कमलों से धनुष बाणं फेरते हैं, और जिसकी ओर हँस कर निहारते हैं उसके जी की जलन हर लेते हैं ॥४॥ रतिकामदेव कार के रूप, वे मुनि वेष क्यों धारण करने लगे, यह कवि की कल्पना मात्र 'अनुक्तविषयावस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। उत्तरार्द्ध में 'कर' के उपमान 'कमल' द्वारा धनुष- बाण का फेरना कहा गया जो वास्तव में कर द्वारा होना चाहिये 'परिणाम अलंकार' है। दो०-लसत मज्जु मुनि-मंडलो, मध्य सीय-रघुचन्द । ज्ञान-सभा जनु तनु धरे, भगति सच्चिदानन्द ॥ २३ ॥ मुनि-मण्डली के बीच में लीताजी और रघुकुल कुमुद के चन्द्रमा रामचन्दजी सुन्दर शोभायमान हो रहे हैं । वे ऐसे मालूम होते हैं मानों ज्ञान की सभा में भक्ति और 'परब्रह्म शरीर धारण किये विराजते हो ॥२३॥ मुनि-मण्डली और ज्ञान-सभा, भक्ति और सीताजी, सच्चिदानन्द और रामचन्द्रजी परस्पर उपमेय उपमान हैं । ज्ञान-सभा, भक्ति और परब्रह्म शरीरधारी नहीं होते, कवि की कल्पना मात्र 'अनुक विषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। चौ०-सानुज सखा समेत मगन मन । बिसरे हरष-साक-सुख-दुख गन। पाहि नोथ कहि पाहि गोसाँई । भूतल परे लकुट की नाँई ॥ १ ॥ छोटे भाई शत्रुहन और मित्र-निषाय के सहित मन में मग्न हो गये, इष, शोक, सुख और दुःख समूह भुला गये । हे नाथ ! रक्षा कीजिये, हे स्वामिन् ! रक्षा कीजिये, कह कर धरती पर डंडे की तरह गिर पड़े ॥१॥ बचन सप्रेम लखन पहिचाने । करत प्रनाम भरत जिय जाने । बन्धु सनेह सरस एहि ओरा । उत साहिब सेवा बरजोरा ॥२॥ प्रेम के साथ निकले हुए वचन को लक्ष्मणजी पहचान गये और मन में जान लिया कि भरतजी प्रणाम करते हैं। इस ओर भाई (भरतजी) के स्नेह की अधिकता और उधर स्वामी को सेवा की प्रबलता (न तो दौड़ कर भरतजी से मिल सकते हैं और न स्वामी द्वारा पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर ही दे सकते हैं ) ॥२॥ यहाँ दोनों भावों की खींचातानी में भावसन्धि है।