पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६५४

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । जलअलि-शब्द के दो अर्थ हैं। एक तो पानी का भँवर जो बहते हुए जल में छोटा बड़ा 'गोलाकार उत्पन होता है। दूसरा पानी पर तैरनेवाला काले रंग का भ्रमर । इन दोनों की चाल एक समान होती है, कभी एक स्थल पर रुक जाते और कभी तेजी से आगे बढ़ते हैं। दो०-लगे होन मङ्गल सगुन, सुनि गुनि कहत निषाद । मिटिहि सोच होइहि हरष, पनि परिनाम बिषाद ॥ २३४ ॥ महल सूचक सगुन होने लगे, उन्हें सुन और विचार निषाद ने कहा। सोच मिटेगा, हर्ष होगा फिर अन्त में विषाद होगा ॥२३॥ सगुन दो प्रकार के हैं, शब्द और दृश्य । शब्दवाले शकुनों को सुन कर और दर्शनवाले शकुनों को देख कर फलाफल कहता है। चौ०-सेवक बचन सत्य सब जाने । आलम निकट जाइ नियराने ॥ भरत दीख बन सैल समाजू । मुदित छुधित्त जनु पाइ सुनाजू ॥१॥ सेवक के वचन सब सत्य जान कर श्राश्रम के समीय जा नियरा गये। भरतजी ने वन और पर्वत-समूह को देखा, वे ऐसे प्रसन्न मालूम होते हैं मानों भूला मनुष्य सुन्दर अन्न पा गया हो ॥१॥ ईति नीति जनु प्रजा दुखारी । त्रिबिधि ताप पीड़ित ग्रह भारी ॥ जाइ सुराज सुदेस सुखारी । होहिं भरतगति तेहि अनुहारी ॥२॥ ईतिभीति, तीनों ताप और भारी अहवाधानी से पीड़ित हुई दुःखित प्रजा भानों सुन्दर राज्य और अच्छे देश में जाकर सुखी हो, भरतजी की दशा उसी के अनुसार हो रही है ॥२॥ ईतिभीति केसात प्रकार हैं। यथा-"अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शकाः। स्वचक्रपर चक्रं च सप्तैताईतयः स्मृता" ॥ अर्थात् अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चुहा, टिड्डी, शुक का लगना, सलैन्य अपने राजा वा पर राज्य के राजा का गम खेती की ईतिमीति हैं। राम-बास बन सम्पति भ्राजा । सुखी प्रजा जनु पाइ सुराजा॥ सचिव बिराग बिधक नरेसू । विपिन सुहावन -पावन देसू ॥३॥ रामचन्द्रजी.के निवास से वन ऐश्वर्य से शोभायमान हो रहा है, ऐसा मालूम होता, है मानो सुन्दर राजा पाकर प्रमा सुखी हो । ज्ञान राजा का वैराग मन्त्री है और सुहावना वन पवित्र देश है ॥३॥ विवेक पर राजा का आरोप करके अच्छे राजा के जितने प्रड हैं अर्थात् मन्त्री, रानी,. राजधानी, मित्र, योद्धा, उङ्का, निशान, नाचगान, महलाचार, वतुरङ्गिनी सेना, प्रजा, नगर, गाँव, पुरवा, देश, प्रदेश, शत्रु नादि समो का कवि जो ने साङ्गोपाङ्ग रूपक वाँधा है। भट जम-नियम सैल-रजधानी । सान्ति सुमति सुचि सुन्दर रानी ॥ सकल अङ्ग. सम्पन्न सुराऊ. । राम चरन आखित चित चाऊ Men संयम नियमादि योद्धा हैं, पर्वत राजधानी है, शान्ति और सुमति सुन्दर पवित्र रानियाँ । ७५ .