पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५९७

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रामचरित मानस । ५३६ है। राजा ययाति के पुत्र ने पिता के कहने से अपनी युवावस्था पिता को दे की, परन्तु पाप वा कलङ्क कुछ नहीं हुश्रा tuen परशुराम की कथा बालकाण्ड २७१ वे दोहे के आगे पहली चैपाई के नीचे की टिप्पणी देखो। राजा ययाति के दौरानियाँ थी । एक शुक्राचार्य की कन्या देवयानी और दूसरी वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा थी। विवाह के समय शुक्राचार्य ने राजा ले प्रतिज्ञा करा ली थी कि वे शर्मिष्ठा से सम्भोग न करें। पर जब शर्मिष्ठा के पुत्र हुश्रा तय शुक्राचार्य ने कुपित होकर राजा को शाप दिया कि तू जर्जर वृद्ध हो जा।बहुत प्रार्थना करने पर अवस्था बदलने का नियम कर दिया। राजा ने अपने सभी पुत्रों से अवस्था बदलने को कहा, परन्तु अधर्म विचार कर किसी ने स्वीकार नहीं किया । अन्त में छोटे लड़के पुरु ने पिता के वचन का महत्व समझ कर अपनी जवानी दे दो और बुढ़ाई श्राप ले ली। यह कथा महाभारत के श्रादि पर्व में विस्तार से पर्षित है। दो०-अनुचित उचित विचार तजि, जे पालहिं पितु बयन ते भाजन सुख-सुजस के, बसहिँ अमरपति-अयन ॥११॥ अनुचित-उचित का विचार छोड़ कर जो पिता के बचनों का पालन करते हैं। वे सुख और सुन्दर यश के पात्र धन फर इन्द्रलेोक में निवास करते हैं ॥१७॥ चौ-अवसि नरेस बचन फुर करहू । पालहु प्रजा सेक परिहरहू ॥ सुरपुर नप पाइहि परितोषू । तुम्ह कहँ सकृत सुजस नहिँ दोषू ॥१॥ अवश्य राजा की बात को सत्य करो , प्रजा को पालो और शोक त्याग दो। इससे देवलोक में राजा सन्तोष को प्राप्त होंगे और तुमको पुण्य तथा मुयश मिलेगा, दोष न होगा ॥१॥ बेद-बिदित सम्मत सबही का । जेहि पितु देइ सो पावइ टीका । करहु राज परिहरहु गलानी मानहु मार बचन हित जानी ॥२॥ वेद में प्रसिद्ध है और सभी का मन है कि जिलको पिता दे वही राजतिलक पावे। इस लिये ग्लानि त्याग कर राज्य करो, मेरा वचन हितकारी समझ कर मान लो ॥२॥ सुनि सुख लहब राम बैदेही । अनुचित कहब न पंडित केही ॥. कौसल्यादि सकल महँ तारी। तेउ प्रजा-सुख होहिं सुखारी ॥३॥ रामचन्द्र और जानकी सुन कर सुख पावेंगे, कोई विद्वान इसे अनुचित न कहेगा। कौशल्या आदि सम्पूर्ण माताएँ भी प्रजा के मुख से सुखी होगी ॥३॥ मरम तुम्हार राम कर जानिहि । सो सब विधि तुम्ह सन भल मानिहि ॥ सौंपेहु राज राम के आये । सेवा करेहु सनेह सुहाये ॥n • जो तुम्हारा और रामचन्द्र का छिपाभेद जानेगा, वह सर्व तरह तुम से भला मानेगा। रामचन्द्र के गाने पर राज्य सौंप देना और सुन्दर प्रेम से उनकी सेवा करना men सभा की प्रति में प्रेम तुम्हार राम कर जानहि' पाठ है।