पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५३३

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। १७२ रामचरित मानस । सचिवसत्य वढा प्रियनारी । माधव सरिस मीत हितकारी ।। चारि पदारथ भरा भंडारू । पुन्य प्रदेस देस अति चोरू ॥२॥ जिनका मन्त्री सत्य है और श्रद्धा प्यारी स्त्री ( पटरानी ) है, माधव भगवान के समान हितकारी मित्र हैं । चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, रत्नादि रूप जिनके) भण्डार में भरा है, पुण्य ही प्रान्त (सूवा) और देश (वह) भू भाग जो राजा के अधीन हो, जिसके अन्त. गंत कई जिले, नगर एवम् ग्राम आदि हो) है ॥२॥ 'राजा के समस्त अंगों का आरोप तीर्थराज में करना समस्त वस्तु विषयक साझ रूपक अलंकार है। राजा के जितने अङ्ग हैं, सभी का आरोप किया गया है। जैसे-"राजा, रानी, मन्त्री, मित्र, सेवक, बन्दीजन, सिंहासन, बँवर, छत्र, कोश, किला, सेना, प्रान्त, देश"। देश की व्याख्या केशवदाश ने इस प्रकार की है। दोहा-रतन खानि पशु पक्षि वसु, वसन सुगन्ध सुदेश। नदी नगर गढ़ वरनिये, भाषा भूषन देश । छेत्र अगम गढ़ गाढ़ सुहावा । सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा ॥ सेन सकल तीरथ बर बीरा । कलुष अनीक दलन रनधीरा ॥३॥ क्षेत्र ही सुन्दर मजबूत दुर्गम किला है, जिसमें सपने में भी शत्रुगण (पाप) प्रवेश नहीं कर पाते । सम्पूर्ण तीर्थ श्रेष्ठ शूरवीरों की सेना है, जो पाए की कटक नाश करने में बड़ी रणधीर है ॥३॥ सङ्गम सिहासन सुठि सोहा । छत्र अपयबट मुनि मन माहा ॥ चेंबर जमुन अरु गङ्ग तरङ्गा । देखि होहिं दुख दारिद भङ्गा ॥१॥ (गङ्गा, यमुया, और सरस्वती का) सक्षम अत्यन्त सुहावना सिंहासन है और मुनियों के मन को मोहित करनेवाला अक्षयवट रूपी छत्र है। गा और यमुनाजी की लहरें चंवर हैं, जिसको देख कर दुःख और दरिद्र नाश हो जाते हैं ॥४॥ दो-सेवहिँ सुकृती साधु सुचि, पावहिं सब मनकाम । बन्दी बेद पुरान गन, कहहिं बिमल गुनग्राम ॥१०॥ पुण्यात्मा साधु सेवा करनेवाले पवित्र सेवक हैं, वे सेवा करके सब मन-कामना पाते हैं । वेद और पुराण-समूह बन्दीजन रूपी निर्मल गुण-गण वखानते हैं ॥१०॥ चौ०-को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ । कलुषपुज कुञ्जर मुगराज । अस तीरथपति देखि सुहावा । सुखसागर रघुबर सुख पावा ॥१॥ • प्रयाग की महिमा कौन कह सकता है ? वे पापों के झुण्ड रूपी हाथी के लिए सिंह हैं। ऐसे सुन्दर तीर्थ राज को देख कर सुख के समुद्र रघुनाथजी ने सुख पाया ॥१॥