पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५०७

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ge रामचरित मानस । दो०-सुठि सुकुमार कुमार दोउ, जनक-सुता सुकुमारि। रथ चढ़ाइ देखराइ बन, फिरेहु गये दिन चारि ॥१॥ दोनों कुमार अत्यन्त सुकुमार और जानकी नुकुमारी हैं। रथ पर बढ़ा कर और वन दिखाकर चार दिन के बाद लौट आना ॥१॥ सुकुमार और सुकुमारी शब्दों से वनवास के अयोग्य होने की व्यजना अगुढ़ व्यंग है। चौ० जनहिफिरहिंधीरदोउभाई। सत्यसन्ध दृढ़नत रघुराई। तब तुम्हबिनयकरहुकरजोरी। फेरिय प्रभु मिथिलेस-किसोरी ॥१॥ दोनों भाई रघुराज, धार, सत्यप्रतिज्ञ और दृढ़ नियम वाले हैं, यदि वे न लौटे तो तुम हाथ जोड़ कर विनती करना कि, हे प्रभो ! जनकनन्दिनी को लौटा दीजिये ॥१॥ जब सिय कानन देखि डेराई । कहेहु मोरि सिख अवसर पाई । सासु ससुर अस कहेउ सँदेसू । पुत्रि फिरिय बन बहुत कलेसू स२॥ जव सीता वन देख कर डरतव तुम समय पाकर मेरी शिक्षा कहना कि हे पुत्री ! सामु ससुर ने ऐसा सन्देशा कहा है कि वन में बहुत कष्ट होगा, घर लौट चलो ॥२॥ पितु गृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी । रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी । एहि बिधि करेहु उपाय कदम्बा । फिरइ त होइ प्रान अवलम्बा ॥३॥ कमी पिता के घर कभी ससुराल में जहाँ तुम्हारी इच्छा हो रहना । इस प्रकार समूह यत्न करना यदि लौटेंगी तो प्राणों को श्राधार होगा ॥३॥ नाहिँ त मार मरन परिनामा । कछु न बसाइ भये विधि बामा । अस कहि सुरछि परा महि राऊ । राम लखन लिय आनि देखाऊ ॥४॥ नहीं तो अन्त में मेरी मृत्यु हो है, कुछ वश नहीं विधाता टेढ़े हुए हैं। रामचन्द्र लश्मर और सोता को लाकर मुझे दिखानो, ऐसा कह कर राजा मूलित होकर धरती पर गिर पड़े ॥४॥ दुःख से मुर्छित होकर राजा का भूमि पर गिरता 'अपस्मार सञ्चारी भाव है। दो-पाइ रजायसु नाइ सिर, रथ अति बेग बनाइ ॥ गयउ जहाँ बाहेर नगर, सीय सहित दोउ भाइ ॥२॥ सुमन्त्र पाशा पा कर सिर नवाया और अत्यन्त वेगवान रथ तैयार करके वहाँ गये जहाँ नगर के बाहर सीताजी के सहित दोनों भाई थे ॥२॥ चौ०-तब सुमन्त्र नृप-बचन सुनाये । करि बिनती रथ राम चढ़ाये । चढिरथसीयसहितदोउ भाई । चले हृदय अवधहि सिरनाई ॥१॥ तव सुमन्त्र ने राजा के वचन कह सुनाये और बिनती करके रामचन्द्रजी को रथ पर