पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४३५

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रामचरितमानस गुरुजी के कथन में 'जौं विधि कुशल नियाहइ काजू' कार्य का निषेध झलक रहा है अर्थात् सय संयम करो, पर यदि ब्रह्मा कुशल से काम निवाइ दें । यह सन्दिग्ध गुणीभूत यह है कि संयम कीजिये कौन जाने काम पूरा होगा या नहीं ? जनमे एक सङ्ग सब भाई । भोजन सयन केलि-लरिकाई। करनबंध उपबीत बियाहा । सङ्ग सङ्ग सब भयउ उछाहा ॥३॥ सब भाई एक साथ जन्मे, भोजन, शयन, लड़कपन के खेल, कर्ण-छेदन, यज्ञोपवीत और विवाह सभी उत्लव साथ ही साथ हुप ॥३॥ बिमल-बंस यह अनुचित एकू । बन्धु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू ।। प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई । हरउ भगत-मन कै कुटिलाई ॥४॥ इस निर्मला-कुल में यह एक ही अनुचित होता है कि इतने बड़े अभिपेक (राजपद निर्वा- चन में ) भाइयों को छोड़ दिया जाता है अर्थात् जब सभी उत्सव साथ साथ हुए तब राज्या- भिषेक भी चारों भाइयों का सन्न ही होना चाहिये। इस तरह रामचन्द्रजी का सुन्दर प्रीति के साथ पछतानी भक्तों के मन की कुटिलता को हरता है ॥७॥ अन्तिम चौपोई के चरण में लक्षणामूलक गढ़ ध्वनि है कि जिन भक्तों के हदय में अन्य देवी, देवता और स्वामियों के प्रति अाशा रूपी पिशाचिनी वर्तमान है, वे इस टेढ़ाई को स्याग देंगे। राज्य पाने का समाचार सुन कर प्रसन्न नहीं हुए घरन् भाइयों के लिये पछताने लगे। अपने भक्तों पर इतनी बड़ी कृपा रखते हैं, ऐसा उदार और दयालु स्वोमी तीनों लोकों में कोई नहीं है। इस स्वभाव को समझ कर भक्तजन श्रीचरणों के खिवाय भूल कर भन्यत्र प्रेम न करेंगे। दो-- लेहि अवसर आये लखन, मगन प्रेम आनन्द । सनमाने प्रिय बचन 'कहि, रघुकुल-कैरव-चन्द ॥१०॥ . उसी समय प्रेम और प्रानन्द में मग्न लक्ष्मणजी आये । रघुकुल रूपी कुमुद वन के चन्द्रमा रामचन्द्रजी ने प्रिय वचन कह कर उनका सम्मान किया ॥१०॥ चौ०-माजहि बाजन बिबिध विधाना । पुर-प्रमोद नहि जाइ बखाना । भरत आगमन सकल मनावहि । आवहु बेगि नयन फल पावहिँ ॥१॥ अनेक प्रकार के बाजे बजते हैं, नगर का आनन्द बखाना नहीं जा सकता ! सब लोग भरतजी का श्रागमन मनाते हैं कि शीघ्र आ जाते तो वे भी नेत्रों का फल पाते ॥१॥ हाट बाट घर गली अथाई। कहहि परसपर लोग लोगाई ॥.. कालि लगन भलि केतिक बारा । पूजिहि बिधि अभिलाष हमारा ॥२॥ बाज़ार, रास्ता, घर, गली और बैठकों में पुरुष और स्त्रियाँ आपस में यही कहती हैं कि कल वह शुभ-मुह कितने समय है जब विधाता हमारी अभिलाषा पूरी करेंगे ? ॥२॥