पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४३१

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३७२ रामचरित मानस। दो०-कहेउ भूप मुनिराज कर, जोइ जोइ आयसु होइ.। राम-राज- -अभिषेक हित, बेशि करहु सोइ सेाइ ॥५॥ राजा ने कहा कि रामचन्द्र के राज्याभिषेक के लिए मुनिराज की जो जो श्राक्षा हो तुम लोग वह वह तुरन्त करो ॥५॥ चै०-हरणि मुनीस कहेउ मृदु-बानी । आनहु सकल सुतीरथ पानी ॥ औषध मूल फूल फल पानो । कहे नाम गनि मङ्गल नाना ॥१॥ मुनीश्वर ने प्रसन्न होकर कोमल वाणी ले कहा कि समस्त उत्तम तीर्थों के जल ले पायो । नाम गिना कर नाना मालीक औषधियाँ, जड़, फूल, फल और पचे कहे ॥१ चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती। मनि-गन मङ्गल-बस्तु अनेकां । जो जग जोग भूप अभिषेका ॥२॥ बँवर, चर्म, वस्त्र और बहुत तरह के असंख्यों प्रकार ऊनी और रेशमी कपड़े । रत्न समूह तथा भाँति भाँति की माडलीक वस्तुएँ जो संसार में राज्याभिषेक के योग्य हैं ॥२॥ बेद-बिदित कहि सकल बिधाना । कहेउ रचहु पुर बिबिध-बिताना। सफल रसाल पूगफल केरा । रोपहु बोथिन्ह पुर , चहुँ फेरा ॥३॥ वेद में विख्यात सम्पूर्ण विधान बता कर कहा कि नगर में अनेक प्रकार के मण्डप बनाओ। श्राम, सुपारी और केले के वृक्ष फल सहित निर्माण कर चारों ओर नगर की गलियों में लगाओ ॥२॥ रचहु मज्जु मनि चौकइ चारू । कहहु बनावन बेगि बजारू ॥ गनपति-गुरु-कुलदेवा । सब विधि करहु भूमिसुर-सेवा ॥४॥ सुन्दर मणियों के मनोहर चौक पुरवायो और तुरन्त बाजार सजने को कह दो। श्रीगणेशा, गुरु और कुलदेव का पूजन करो, सब तरह से ब्राहाणे ही सेवा करो॥॥ दो०-छवज पताक तारन कलस, सजहु तुरग रथ नाग । सिर धरि मुनिबर बचन सब, निज निज काजहि लाग॥६॥ ध्वजा, पताका, वन्दनवार, कलश, रथ, घोड़े और हाथी सब को सजानो मुनिवर की आशा शिरोधार्य कर सब अपने अपने काम में लग गये ॥६॥ चौल-जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा । सो तेहि काज प्रथम जनु कीन्हा । भिम साधु सुर पूजत राजा । करत राम हित मङ्गल-काजी ॥१॥ मुनिराज ने जिसको जो आज्ञा दी, उस काम को वह मानों पहले ही कर रक्खा हो! राजा दशरथजी ब्राह्मण, खज्जन और देव-पूजन आदि मङ्गल के कार्य रामचन्द्रजी की भलाई के लिए करते हैं ॥१॥