पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३९०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दाम के नहीं। हाथी, रथ. घोड़े, सेवक और दासियाँ तथा कामधेनु के समान ( इच्छानुसार दूध देनेवाली ) अलंकार-युक्त गायें ॥२॥ बस्तु अनेक करिय किमि लेखा । कहि न जाइ जाहिँ जिन्ह देखा ॥ लोकपोल अवलोकि सिहाने । लीन्ह अवधपति सब सुख माने ॥३॥ असंख्यों वस्तुओं की गिनती कैसे की जाय ? वह कही नहीं जाती, जिन्हों ने देखा वे ही जान सकते हैं । जिनको देख कर लोकपाल (इन्द्र, कुवेर आदि ) बड़ाई करते हैं अयोध्या- नरेश ने सब प्रसन्नता से ले लिया ॥३॥ दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासहिं आवा ॥ । तब कर जोरि जनक मृदु बानी । बोले सब बरात सनमानी ॥४॥ जिसको जो अच्छा लगा वह मङ्गनों को दिया, जो बच रहा वह जनवास में आया। तब राजा जनक हाथ जोड़ कर सब वरात का सम्मान करते हुए कोमल वाणी से बोले ॥४॥ जो धच रहा वह जनवास में पाया, इस वाक्य में उपादान लक्षणा है। सुवर्ण, रत्न, वस्त्रादिकों का स्वयम् जनवास में आना असम्भव है, उनका कोई ले जानेवाला है । पर यहाँ मुख्वार्थ सेवक गणों का नाम वाध कर के अर्थ प्रकट किया है। हरिगीतिका-छन्द। सनमानि सकल बरात आदर, दान बिनय बड़ाइ के प्रमुदित महामुनि-वृन्द बन्दे, पूजि प्रेम लड़ाइ कै.॥ सिर नाइ देव मनाइ सब सन, कहत कर सम्पुट किये । सुर साधु चाहत भाव सिन्धु कि, तोष जल अञ्जलि दिये ॥३८॥ सम्पूर्ण बरात को श्रादर, दान, बिनती और बड़ाई कर के सत्कार किया। बड़ी प्रसन्नता से प्रीति बढ़ा कर महा मुनियों की मण्डली की पूजा कर के प्रणाम किया । देवताओं को सिर नवा कर मनाया, सब से हाथ जोड़े हुए कहते हैं । देवता और साधु प्रेम चाहते हैं, क्या अँजुरी से पानी देने से समुद्र तृप्त हो सकता है ? (कदापि नहीं ) ॥ ३ ॥ देवता और लाधु भाव चाहते हैं, यह उपमेय वाक्य है। क्या समुद्र अजली से जल देने पर सन्तुष्ट हो सकता है ? यह उपमान वाक्य है । बिना वाचक के दोनों वाक्यों में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव झलकना 'दृष्टान्त अलंकार' है। तात्पर्य यह कि आप लोग प्रम से प्रसन्न होनेवाले हैं, मेरा यह तुच्छ दान तो अझलो से समुद्र को पानी देने के बराबर है। कर जारि जनक बहारि बन्धु-समेत कोसलराय साँ। बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय 1