पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३३१

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सकि रामचरितमानस परशुगम-मागमन । भति रिस पोले बचन कठोरा । कर जद जनक धनुष फेह तारा बेगि देसाठ मूद न त भानू । उलट महि जाँ लगि तप राजू ॥ रेलवेरियर प्रेस, प्रयाग।