पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३११

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व रामचरित मानस चौ०-भूप सहस-दस एकहि बारा । लगे 'उठावन टरइ न दारा । डगइ न सम्भु सरासन कैसे । कामी बचन सती मन जैसे ॥१॥ दस सहन राजा एक ही बार धनुष उठाने के लिए लगे, पर वह उनके हटाये हटता नहीं। शिवजी का धनुष कैसे नहीं हिलता है, जैसे कामी पुरुषों के चचन से सती त्रियों का मन नही डगता॥१॥ शङ्का-(१) दस हजार राजा एक साथ उठाने लगे, यदि धनुष टूट जाता तो जानकीजी किसे ध्याही जाती है । (२) धनुष की लम्बाई चौड़ाई युग के अनुसार मनुष्यों की भाकते के अनुकूल रही होगी। यदि दस हज़ार राजा साथ ही एक एक उँगली रखते तो भी नहीं अँट सकते थे, फिर सय एक साथ उठाने को कैसे लग गये । (३. यदि यह कहा जाय कि एक ही दिन में बारी बारी कर के दस हज़ार लगे तो यारह घण्टे का दिन होता है और एक घण्टे में साठ मिनिट । बारह घण्टे के कुल ७२० मिनिट हुप । एक एक राजा के लिए चौथाई मिनिट का समय माना जाय तो दिन भर में ज्यो त्यो तीन हजार लग सकते थे, फिर दस सहन की संख्या कैसे आ सकता है ? । समाधान-(१) दस हज़ार में युद्ध होता, अन्त में जो वचता उसके साथ जानकीजी का विवाह होता।( २) यह कार्य विना किसी उपाय के होना असम्भव था, कोई जमीर श्रादि लगा कर दस हज़ार राजाश्री का एक साथ लगना सम्भव हो सकता है। एक दिन में दस दस बीस वीस राजा साथ में धारी वारी कर के लगे तो इस प्रकार दिन में दस हज़ार की संख्या पूरी हो सकती है। इस चौपाई पर विद्वानों ने बहुत से तर्क वितर्क किये हैं, उन सब का उल्लेख करना बड़े विस्तार का कारण होगा। सब नृप भये जोग उपहासी । जैसे 'बिनु विराग सन्यासी ॥ कीरति विजय बोरता भारी । चले चाप कर बरबस हारी ॥२॥ सब राजा हँसी (निन्दा) के योग्य हुए, जैसे बिना वैराग्य के सन्यासी निन्दनीय होता है। कीर्ति, विजय, बड़ी वीरता धनुष के हाथ जोगवरी से हार कर चले ॥२॥ श्रीहत भये हारि हिय राजा । बैठे निज निज जाइ समाजा॥ नृपन्ह बिलोकि जनक अकुलाने । बाले बचन रोष जनु साने ॥३॥ राजा लोग हदय में हार कर तेज-हीन हो गये और अपनी अग्नी मण्डली में जाकर बैठे। राजाओं को देख कर जनकजी घबरा गये और वचन बोले, उनके वचन ऐसे मालूम होते हैं मानों क्रोध से सने हो ॥३॥ दीप दोप के भूपति नाना । आये सुनि हम जो पन ठाना । देव दनुज धरि मनुज सरोरा । विपुल बीर आये रंनधीरा ॥ ४ ॥ हमने जो प्रतिक्षा ठानी है उसको सुनकर द्वीप द्वीप के असंखयों राजाआये। देवता, देख मनुम्पन्देह धारण कर बहुत से रणधीर वीर आये है