पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२८०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २२३ दो--नाहिँ त हम कह सुनहु सखि, इन्ह कर दरसन दूरि । यह सङ्घट तब होइ जब, पुन्य पुराकृत भूरि ॥२२॥ नहीं तो हे सखी ! सुनो, हमको इनके दर्शन दुर्लभ हैं। यह संयोग तभी हो सकता है जब पूर्व जन्म में बहुत बड़ा सुकृत किया हो ॥ २२२ ॥ चौ०–बोली अपर कहेहु. सखि नीका । एहि विवाह अति हित सबही का ॥ कोउ कह सङ्कर चाप कठोरा । ये स्यामल मृदुगात किसोरा ॥१॥ दूसरी बोली-हे सस्त्री ! तुमने अच्छा कहा, इस विवाह से सभी का बहुत बड़ा कल्याण है । कोई कहने लगी कि शिवजी का धनुष कठिन है और ये श्यामल कोमल शरीर, किशोर अवस्था के (बालक) हैं ॥१॥ सब असमञ्जस अहइ सयानी । यह सुनि अपर कहइ मृदु बानी ॥ सखि इन्हकहँ कोउ कोउ असकहहीं। बड़ प्रमाउ देखत लघु अहहीं॥२॥ हे सयानी ! सय अण्डस ही है, यह सुन कर दूसरी ललना कोमल वाणी से कहने लगी। हे सखी ! कोई कोई इनको ऐसा कहते हैं कि देखने में छोटे हैं, परन्तु बड़े प्रभाव- शालो हैं ॥२॥ परसि जासु पद-पङ्कज धूरी । तरी अहिल्या कृत-अघ-भूरी । से कि रहिहिं बिनु सिव-धनु तारे । यह प्रतीति परिहरिय न भोरे ॥३॥ जिनके चरण-कमलो की धूली छू जाने से महापाप (पतिवञ्चकता) करनेवाली अहल्या तर गई। क्या वे शिव-चाप को बिना तोड़े रहेंगे? (अवश्य ही खण्डन करेंगे) यह विश्वास भूल कर भी न छोड़ना चाहिए ॥शा जिन्होंने पाप से भरी अहल्या को उबारा उनके लिए शिव-धनुष तोड़ कर हम लोगों की कामना पूरी करना कोई बड़ी बात नहीं 'अर्थापत्तिप्रमाण, है । जेहि बिरजि रचि सीय सँवारी । तेहि स्यामल बर रचेउ बिचारी ॥ तासुबचन सुनि सब हरपानी। ऐसइ होउ कहहिं मृदु बानी ॥en जिस ब्रह्मा ने सीता को सँवार कर बनाया है, उसी ने विचार कर श्यामल बर रचा है उसकी बात सुन कर सब प्रसन्न हुई और मधुर वाणी से कहने लगी कि ऐसा ही हो ॥५॥ दो०-हिय हरषहिँ बरषहिँ सुमन, सुमुखि सुलोचनि-वृन्द । जाहिँ जहाँ जहँ बन्धु दोउ, तहँ तहँ परमानन्द ॥२२३॥ सुन्दर मुस्त्र और सुन्दर नेत्रवाली झुण्ड की झुण्ड स्त्रियाँ हर्षित हो फर फूल बरसाती हैं। दोनों भाई जहाँ जहाँ जाते हैं, वहाँ वहाँ परम आनन्द हो रहा है ।।२२३॥ यह दोहा कई प्रकार के मनोहर व्यों से परिपूर्ण है। पुण्य-वर्षा करने में निम्न ध्वनि है- (१) रामचन्द्रजी के चरण कोमल हैं और धरती कठोर है, वे पयादे चल रहे हैं इसलिए फूल ।