पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२५०

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१ ९५ प्रथम सोपान, बालकाण्ड । दो-तब नन्दीमुख-खाध करि, जातकरम सब कीन्ह । हाटक धेनु बसन भनि, नृप विप्रन्ह कहँ दोन्ह ॥१९॥ तब राजा ने नान्दीमुख-श्राद्ध कर के सब जातकर्म किए । सुवर्ण, गैगा, वन और मणि ब्राह्मणों को दान दिया ॥ १६॥ गुटका में 'नन्दी मुख सगध करि' पाठ है । निर्णय सिन्धु में लिखा है कि पुत्र-कन्या के जन्म, उपनयन, विवाहादि उत्सवों में नान्दीमुख-श्राद्ध किया जाता है। यह पूर्वाह्न-काल में होता है। परन्तु पुत्र-जन्म में समय का नियम नहीं है । जातकम-हिन्दुओं के दस संस्कारों में से चौथा संस्कार है जो बालक के जन्म के समय होता है। आजकल यह संस्कार बहुत कम लोग करते हैं। चौ०-ध्वज पताकतोरन पुर छावा । कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा ॥ सुमनष्टि अकास तैं हाई । ब्रह्मानन्द मगन सब लोई ॥१॥ ध्वजा, पताका और वन्दनवार से नगर छा गया है, जिस तरह सजावट हुई वह कही नहीं जा सकती। माकाश से फूलों की वर्षा हो रही है, सब लोग ब्रह्म के प्रानन्द मै मन हैं ॥१॥ अन्द बन्द मिलि चली लोगाई । सहज सिंगार किये उठि धाई ॥ कनक-कलस मङ्गल भरि थारा । गावत पैठहि भूप-दुआरा ॥२॥ झुण्ड की झुण्ड स्त्रियाँ मिल कर चली, वे स्वाभाविक शृङ्गार किये हुए उ दौड़ी। सुवर्ण के कलश और थालों में माइलीक द्रव्य भर कर गान करती हुई राजमहल के भीतर प्रवेश करती हैं ॥२॥ करि आरती निछावर करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं। मागध सूत बन्दि-गन गायक। पावन गुन गावहिँ रघुनायक ॥३॥ भारती कर के न्योछावर करती हैं, बार बार बालक के चरणों में पड़ती हैं। राजवंश बखाननेवाले, पौराणिक, वन्दोजन और गवैयों के समूह रघुनायक (दशरथजी) के पवित्र गुण गाते हैं ॥३ सरबस दान दीन्ह सब कोहू । जेहि पावा राखा नहिँ ताहू॥ मृगमद-चन्दन-कुङ्कुम कोचा। मची सकल बीधिन्ह बिच बीचा सब किसी ने सर्वस्व दान दिया जिसने पाया उसने भी नहीं रक्खा । कस्तूरी, चन्दन और केसर का कीचड़ सम्पूर्ण गलियों के बीच बीच में हो रहा है ॥४॥ सब किसी ने सर्वस्व दान दिया और जिसने पाया उसने भी दूसरों को दे दिया। इस कएन मै भयोध्यापुर वासियों की उदारता का अतिशय वर्णन 'प्रत्युक्ति अलंकार है। 1