पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२४६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १६५ चौ०-तबहि राय प्रिय नारि बोलाई । कौसल्यादि तहाँ चलि आई॥ अरध-भाग कासल्यहि दीन्हा । उभय माग आधे कर कीन्हा ॥१॥ उसी समय राजा (रनिवास में जा कर) प्यारी स्त्रियों को बुलाया. वहाँ कौशल्या और केकई चली आई । आधा भाग ( हविष्यान ) कौशल्या को दे दिया, शेष प्राधा भाग हाथ में बना उसका दो साग किश ॥१॥ कैकेई कह नप सो दयऊ । रहेउ' सा उभय भोग पुनि भयऊ॥ कौसल्या कैकयो हाथ धरि । दीन्ह सुमित्राहि मन प्रसन्न करि ॥२॥ उसमें एक भाग केयी को दिया, रहा चौथा भाग फिर उसका दो भाग हुआ । राजा ने उन दोनों भागों को एक कौशल्याजी के दूसरा केकयी के हाथ पर रख दिया, इतने में सुमित्राजी भा गई, उन्हें देख कर राजा के मन में संकोच हुआ कि अब इन्हें क्या देऊँ ? परम पवित्र पतिप्राणा कौशल्या और केकयी पति के हदय का असमाजस जान कर (अपना अन्तिम भाग ) प्रसन्न मन से सुमिनाजी को दे दिया ॥॥ बहुतेरे विद्वान् इस प्रकार अर्थ करते हैं कि-'अन्तिम भाग को राजाने कौशल्या और केकयी के हाथ में धर कर प्रसन्न मन कर के सुमित्रा को दिया। परन्तु इस टोटके का कारण कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है कि कौशल्या और केयी के हाथ में स्पर्श क्यों कराया। यदि यही अर्थ ठीक मान ले तो लक्षमणजी का भाग कौशल्या के हाथ में और शत्र हन का भाग केकयो के हाथ में छुपाया। इसी से लक्ष्मण रामचन्द्रजी के तथा शत्रुहन भरतजी के अनुगामी हुए, तब कौशल्यादि शब्द से तीनों रानियों के साथ पाने का अर्थ होगा। एहि विधि गर्भ-सहित सव नारी । भई हृदय हरषित सुख-भारी ॥ जो दिन से हरि गर्भहि आये। सकल लोक सुख-सम्पति छाये ॥३॥ इस प्रकार सब स्त्रियाँ गर्भ सहित हुई, उनके हदय में बड़ा सुख आनन्द हुआ। जिस दिन से भगवान् गर्भ में आये, उसी दिन से सम्पूर्ण लोकों में सुख सम्पत्ति छा गई ॥३॥ मन्दिर महँ सब राजहिँ रानी। सोमा--मील-तेज की खानी। सुख-जुत कछुक कोल चलि गयऊ । जेहि प्रभु प्रगट सो अवसर भयज॥४॥ शोभा, शील और तेज की राशि सब रानियाँ राजमहल में शोभित हो रही हैं। सुखपूर्वक कुछ काल बीत गया, जिस समय भगवान् प्रकट होनेवाले थे, वह अवसर प्राप्त हुाinen दो०-जोग लगन ग्रह बार तिथि, सकल मये अनुकूल । चर अरु अचर हरष-जुत, राम-जनम सुख-मूल ॥ १६० योग, लग्न, ग्रह, बार और तिथि सप अनुकूल हुए, जड़ और चेतन सुख के मूल राम- चन्द्रजी के जन्म के समय हर्ष युक्त हैं ॥१६oll