पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२३२

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घनेरे ॥३ प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १७७ भूप अनुज अरिमर्दन नामा । भयउ सो कुम्भकरन बल धामा सचिव जो रहा धरमरुचि जासू । भयउ बिमात्र-बन्धु लघु तोसू ॥२॥ राजा का छोटा भाई जिसका अरिमर्दन नाम था, वह बल का धाम कुम्भकर्ण हुआ। जो उसका मन्त्री धर्मरुचि था, वह रावण की दूसरी माता से उत्पन्न छोटा भाई हुआ ॥ २ ॥ नाम विभीषन जेहि जग जाना। बिष्नु-भगत विज्ञान-निधाना ॥ रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भये निसाचर घोर ॥ उसका नाम विभीषण जिसको संसार जानता है कि वह विज्ञान का स्थान और हरिभक हुमा । राजा के पुत्र और सेवक ( नौकर-चाकर) जितने थे वे सब भीषण राक्षस हुए ॥३॥ काम-रूप खल जिनिस अनेका। कुटिल भयङ्कर बिगत-विधेका ॥ कृपा-रहित हिंसक सब पापी । बरनि न जाहि बिस्व परितापी ॥४॥ सब इच्छानुसार रूप धरनेवाले दुष्ट, अनेक प्रकार के धोखेबाज़, रावने, शान से हीन, निर्दय, हिंसक, हत्या करनेवाले । पापा और सारे जगत् को दुःख देनेवाजे हुए जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता ॥४॥ दो-उपजे जदपि पुलस्त्य-कुल; पावन अमल अनूप । तदपि महीसुर साप-बस, भये साल अघ-रूप ॥ १७६ ॥ यद्यपि वे पवित्र, निर्मल, अनुपमा पुलस्त्य मुनि के वंश में उत्पन्न हुए । तथापि ब्राह्मणे के शाप से सम्पूर्ण पाप के रूप ( राक्षस) हुए ॥१७६॥ कारण 'मुनिकुल' है उससे विपरीति कार्य 'राक्षस' का उत्पन्न होना 'द्वितीय विषम अलंकार' है। विसेष-वाल्मीकीय और अध्यात्मरामायण में लिखा है कि सुमाली दैत्य ने अपनी कन्या केकसी से कहा कि तुम पुलस्त्य मुनि के पुत्र विधवाजी को पति मान कर सन्तानोत्पत्ति करो। वह पिता की आज्ञा से सन्ध्या काल में ऋषि के पास गई, हमसे उन्होंने कहा कि गक्षसी समय के कारण राक्षस पुत्र होगा। केसी के विनय करने पर अनुग्रह किया कि छोटा पुत्र हरिभक होगा। केकसी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण, शुर्पणखा ओर विभीषण हुए । रुद्रयामल तन्त्र और पद्मपुराण में लिखा है कि केकसी ने श्रा कर प्रार्थना की, विधवा मुनि रतिदान की स्वीकृति दे ध्यान में लीन हो गये; वह. दस महीने खड़ी रही। ध्यान छूटने पर पूछो-उसने कहा इस बार मुझे ऋतुधर्म हुआ है, इससे आशीर्वाद दिया कि प्रथम पुत्र दस मुखवाला होगा और केसी से कहा तेरे एक पुत्र होगा, पर वह बड़ा शानो और हरि भक्त होगा। केकसी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण, शूर्पणखा और केसी के गर्भ से विभीषण हुए । रामचरितमानस में भी विभीषण को विमातृज बन्धु कहा गया है। ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य मुनि. पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा और विश्रवा के ज्येष्ठ पुत्र कुवेर हुए, कुबेर की माता भण्डाज मुनि की कन्या है। शेष पुत्रों का वर्णन ऊपर हो चुका है।