पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१६

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चित्र-परिचय 1 भिन्न भिन्न चित्रकारों के बनाये मिन्न भिन्न अवस्था के गोस्वामी तुलसीदासजी के तीन चित्र रामचरितमानस में लगे हैं, उनका परिचय ऐतिहासिक पुस्तकों और किम्बदन्तियों से जहाँ तक उपलब्ध हुश्रा वह प्रकाशित किया जाता है (१)स एक रंगे चित्र को बादशाह अकबर के चित्रकारों ने सम्बत् १६२५ विक्रमाव्द के लगभंग, बनाया, उस समय गोलाँईजो की अवस्था ३६ वर्ष की थी और वे तपश्चर्यों में अनुरक्त थे। इतिहास से पता चलता है कि बादशाह अकसर अपनी राजसमा में प्रत्येक मत के विद्वानों को पुरखने का अनुरोगी और प्रसिद्ध महात्मा पुरुषों के चित्रों का संग्रह कर अपनी चित्रशाला सजवाने का बड़ा शौकीन था । अकबर का प्रकिद्र बज़ीर नवाब खानखाना गोस्वामीजी पर अत्यन्त प्रेम रखता था। बहुत सम्भव है कि यह चित्र उसी के उद्योग से बन कर शाही जिनालय में रखा गया हो। पहले पहल इस चित्र को लड़न के किसी समाचार पत्र ने प्रकाशित किया और उसी के द्वारा इसका भारत में प्रचार हुआ है। (२) दूसरा चित्र बादशाह जहाँगीर के चित्रकारों ने सम्बत् १६६५ विक्रमाद के लगभग निर्माण किया होगा, क्योंकि जहाँगीर सम्बत् १६६२ से १६८४ विक्रमाब्द पर्यन्त दिल्ली के राज्यासन पर विराजमान था। उस समय गोस्वामीजी की अवस्था ७६ वर्ष की रही होगी। गोसाँईजी के जीवनचरित्र में लिखा है कि बादशाह जहाँगीर उनसे मिलने काशी आया था। बादशाह उनपर वहा प्रेम रखता और उन्हें पूज्यष्टि से. देखता था। एकबार गोस्वामीजी भयंकर व्याधि से अत्यन्त पीड़ित हुए थे, सम्भव है कि उनकी बीमारी का समाचार पाकर वह स्नेहवश काशी आया हो और उसी समय अपने चित्रकारों को चित्र लेने की आशा दी हो, इसी से यह चिन सद्यः रोगमुक्त अवस्था का लिया मालूम होता है। उन दिनों गोस्वामीजी प्रहाघाट पर पं० गंगा 'राम जोशी के यहाँ निवास करते थे। पं० गंगाराम गोसाईजी के मित्रों में कहे जाते हैं, शाही चित्र. कारों से मिल कर किसी प्रकार उन्होंने इस चित्र की प्रतिलिपि प्राप्त कर ली हो तो आश्चर्य नहीं । क्योंकि सना जाता है कि उनके वंशजों के पास वह चित्र अबतक सुरक्षित है। वर्तमान काल के पं० रणकोइलाल व्यास अपने को पं० गंगाराम ज्योतिषी का उत्तराधिकारी बतलाते हैं। उन्होंने सन १३१५ ई० में गोस्वामीजी की जीवनी लिखवा कर प्रकाशित करायी है और उसमें वही एकरंगा 'चित्र भी दिया है। व्यासजी का कथन है कि यह चित्रं बादशाह जहाँगीर ने सम्बत् १६५५ में । जयपुर के किसी कारीगर से बनवाया था। परन्तु उस समय तो अकयर गद्दी पर था और जहाँगीर राजकुमार था, वह तो सम्बत १६६२ में गद्दी पर बैठा था। यदि यह कहा जाय कि राजकुमार की अवस्था में ही जहाँगीर ने चित्र बनवाया तो सम्भव नहीं, क्योंकि गद्दी पर बैठने बाद उसने गोस्वामाजो को बुलवाकर एक बार जेल में बन्द करवा दिया था। यदि वह राज- कुमार की अवस्था में गोस्वामीजी का प्रेमी होता तो राज्यासन पर बैठ कर उन्हें यन्दो न बनाता । जल में बन्द करने पर वह उनके महत्व ले परिचित हो प्रेमी माँ और तोनि बनवाने हो जाया C 1 1