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मानस-पिङ्गल। १२ अलंकार। मर्थ और शब्द की वह युक्ति जिससे काव्य की शोभा हो, अथवा वह रीति जिससे उसमें प्रभाष और रोचकता आ जाय । अलंकार से कविता की मनोहरता बहुत अधिक बढ़ जाती है, पर यह बात नहीं कि 'अलंकार' के यिना कविता होती ही नहीं । जैसे आभूषण पहमने से मनुष्य के शरीर की शोभा बढ़ जाती है, उसी तरह काव्य में 'श्रलंकार से चमत्कार बाबाता है और उसकी रमणीयता बढ़ जाती है। भलंकार के तीन भेद हैं । शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयलिंकार । शम्दालंकार उसको कहते हैं जिसमें शब्दों का सौन्दर्य हो, जैसे मनुमास, यमक सादि । अर्थालंकार उसको कहते हैं जिसके अर्थ में चमत्कार हो, जैसे उपमा अपक आदि । उमयालंकार यह है जिसमें शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार हो। अलंकारों का लक्षण और उवाइरण यदि विस्तार के साथ लिखा जाय तो एक बड़ी पुस्तक मेवामा सकता है। रामचरितमानस में हमने जिन अलंकारों के नाम लिये हैं, वे अलंकार प्रकाश, काप्यनिर्णय, भाषाभूषण और अलंकारमञ्जूषा, प्रायः इन्हीं चारों अलंकार के अन्धों भाधार पर हैं। यदि पाठक विस्तारपूर्वक देखना चाहे तो इन्हीं ग्रन्थों में देख सकते हैं। अति मानस-पिङ्गल समाप्तः ।