पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२३१

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मानस-पिङ्गल। वर्ण वृत्तों के नाम । रामचरितमानस में वर्णवृत्त ग्यारह हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) अनुष्टुप, (२) इन्द्रवज्रा, (३) atटक, (४) नगस्वरूपिणी, (५) भुजङ्गप्रयात, (६) मालिनी (७) रथोद्धता () बसन्ततिलका, ' (8) बंशस्थबिलम्' १० शार्दूलविक्रीडित. (११) स्नग्धरा । (१) अनुष्टुप-वृत्त के लक्षण । अनुष्टुप-वृत्त के चारों चरण आठ आठ वर्ण के होते हैं। इसके प्रत्येक विषम चरण में पाँचवाँ अक्षर लघु तथा छठा अक्षर दीर्घ होता है और सम पदों में सातवाँ वर्ष भी लघु, होता है। इसके लिघाय अक्षरों में गुरु लघु का कोई नियम नहीं है । मानस में इसके श्लोक हैं। उदाहरण। रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं', विप्रेण हरतोषये । ये पठन्ति नरा भक्त्या, तेषां शम्भुःप्रसीदति ॥१॥ इस श्लोक के पहले और तीसरे चरण में पाँचवाँ अक्षर लघु तथा छठवाँ गुरु है। दूसरे और चौथे चरण में पाँचवाँ, सातवाँ वर्ण नधु और छठवाँ गुरु है। (२) इन्द्रवज्रा-वृत्त के लक्षण । इन्द्रवज्रा-वृत्त के चारों चरण ग्यारह ग्यारहअक्षर के होते हैं। इसके प्रत्येक चरणों में दो तगण, एक जगण और अन्त में दो गुरु वर्ण आते हैं। इसमें और उपेन्द्रवज्रा में इतना ही अन्तर है कि उपेन्द्रवज्रा के आदि में जगण रहता है, शेष कुल वर्ण इन्द्रवज्रा के समान ही आते हैं । इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवजा के चौदह (कीर्ति, वाणी, माला, शाला, हंसी, मोया, जाया, बाला, आा, भद्रा, प्रेमा, रामा, रिद्धि, और सिद्धि) भेद हैं। इन चौदही के लक्षण उदाहरण अलग अलग वर्णन करने से विस्तार बढ़ेगा । इन्द्रवजा वृत्त रामचरितमानस में फेवल एक ही आया है जो नीचे उदाहरण में दिखाया जाता है। यह शाला और हंसी से मिला वृत्त है ! इसका चतुर्थ चरण उपेन्द्रवजा का है, क्योंकि उसके आदि में जगण है। उदाहरण। नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्ग, सीतासमारोपित वामभागम् । पाणै महाशायक चारु चापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥१॥ (३) ताटक-वृत्त के लक्षण । वोटक-वृत्त के चारों चरण बारह बारह अक्षर के होते हैं। इसके प्रत्येक चरणों में चार । सगण अर्थात् तीसरा, नवाँ और बारहवाँ अक्षर गुरु होता है। लङ्काकाण्ड में ग्यारह और उत्तर काण्ड में बीस, यही ३१ वृत्त रामचरितमानस में आया है।