पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०७२

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सप्तम सापान, उत्तरकाण्ड । कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दर अधिकापतिमभीष्टसिद्धिदम् । कारुणीककलकज्जलोचन नौमि शङ्करमनमोचनम् ॥३॥ कुग्दपुष्प, चन्द्रमा और शह के समान सुन्दर गौर वर्ण, पार्वतीजी के स्वामी, वाञ्छिन फल के दाता, दयालु, मनोहर, कमल के तुल्य नेत्र और कामदेव से छुड़ानेवाले शङ्करजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥३॥ एक उयलेय शिवजी के गौर वर्ष की समता के लिये अनेक उपमानों का कथन है। धर्म भिन्न भिन्न हैं, जैसे कुन्द के समान उज्वल और कोमल, चन्द्रमा के समान श्वेत और प्रकाशमान, शङ्ख के समान सफेद और कठोर । यह सिधा मालेपमा अलंकार है। दो-रहा एक दिन अवधि कर, अति आरत घरलोग । जहँ तहँ सोचहि नारि नर, कृस-तन राम बियोग । (रामचन्द्रजी को अयोध्या में लौटने की) अवधि का एक दिन रह गया इल से पुर के . लोग अत्यन्त दुखो हो रहे हैं। जहाँ तहाँ स्त्री-पुरुष रामचन्द्रजी के विरह से दुर्बल शरीर हुए सोचते हैं। सगुन होहिं सुन्दर सकल, मन प्रसन्न सब केर। प्रभु आगमन जनाव जनु, नगर रस्य बहुँ फेर सम्पूर्ण सुन्दर सगुन होते हैं जिससे सब के सन प्रसन हो गये। नगर में चारों ओर रमणीयता छा गई, ऐसा मालूम होता है मानों वह प्रभु रामचन्द जी के आगमन को सूचित करती हो। कौसल्यादि मातु सब, मन अनन्द अस होइ । अनुज जुत, कहन चहत अब कोई। कौशल्या आदि सब माताओं के मन में ऐसा आनन्द हो रहा है कि अब कोई कहना चाहता है प्रभु रामचन्द्रजी सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मण के सहित आ गये। भरत नयन भुज दच्छिन, फरकत बारहि बार। जानि सगुन मन हरष अति, लागे करन बिचार ।। भरतजी की दाहिनी आँख और भुजा बार बार फड़कती हैं । सगुनों को जान मन में बहुत प्रसन्न हुए और विचार करने लगे। उपयुक्त दोहों में तीन प्रकार के शकुन कहे गये हैं 1 नगर निवासी स्त्री-पुरुषों को प्रत्यक्ष, माताश्री को मानसिक और भरतजी को विहज शकुन हो रहे हैं। चौ-रहेउ एकदिन अवधि अधारा । मुझत मन दुख भयउ अपारा ॥ कारन कवन नाथ नहिं आये। जानि कुटिल किधों मेाहि बिसराये॥१॥ (चौदह वर्ष की) अवधि के दिन में एक दिनको आधार रह गया, { और प्रभु के बागमन आयउ प्रभु