पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०५७

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रामचरित मानस । . कोध रहित और ज्ञान के रूप हैं। आप के अवतार श्रेष्ट अनन्त गुणे से पूर्ण हैं आप पृथ्वी.. का बोझ इटानेवाले और ज्ञान के राशि है ॥३॥ अज व्यापकलेकमनादि सदा । करुनाकर राम 'नमामि मुदा॥ रघुबंश-विभूषन दूपनहा । कृत भूप बिभीषन दीन रहा ॥४॥ श्राप अजन्मे, व्यापक, अद्वितीय, अनादि, नित्य, दया की खान और राम है मैं प्रसन्नता से नमस्कार करता हूँ । रघुकुल के भूषण, दूषण राक्षस को हनन करनेवाले हैं, विभीषण दीन था उसको आपने राजा बना दिया ॥४॥ गुन-ज्ञान निधान अमान अजं। नित राम नमामि धिभु बिरज । भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं । खलबन्द-निकन्द महा कुसलं ॥५॥ आप गुण और शान के भण्डार, निरभिमान, जन्म न लेनेवाले, त्रिकालव्यापी, परमात्मा तथा प्रशान रहित हैं, हे राम ! मैं आप को नमस्कार करता हूँ। आप की भुजाओं के वल का प्रताप बहुत बड़ा है, दुष्टों के समुदाय के नाश करने में आप बड़े ही प्रवीण हैं ॥५॥ बिनु कारन दोल दयाल हितं। छबि-धाम नमामि रमा-सहितं ॥ सवतारन-कारन काज-पर। मन-सम्भव दारुन-दोष-हर ॥६॥ 'श्राप बिना कारण ही दोनों पर दयाल हो उनकी भलाई करनेवाले हैं, जानकी के सहित शोभाधाम रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ। संसार से पार करने के लिए आप श्रेष्ट कारण और कार्यरूप है, मन से उत्पन भीषण दोषों के माप हरनेवाले हैं ॥६॥ वर चाप मनोहर बोन धर। जलजारुन-लोचन भूप बर। सुख-मन्दिर सुन्दर नीरमन । मद मार मुधा-ममता-समन ॥६॥ श्राए सुन्दर धनुष वाण और तरकस लिए हुए, लाल कमल के समान नेत्र वाले श्रेष्ठ राजा हैं । सुन्दर मुख के स्थान, लक्ष्मीकान्त, मद, काम और झूठे ममत्व को श्राप नाश करनेवाले हैं ॥ ७॥ अलवा अखंड न गोचर गो । सब. रूप सदा सब होइन गो. ॥ इति बेद बदन्ति न दन्तकथा। रवि ओतपभिन न भिन्न जया ॥८॥ भाप विष, निर्विघ्ने और इन्द्रियों द्वारा नहीं प्राप्त होते, सदा सर्वरूप. हो कर भी सब रूप नहीं है । यह वेद की कहनूत है दन्तकया नहीं, जैसे सूर्य और घाम भिन्न होने पर भी मिन नहीं है ॥८॥ कृतकृत्य बिमा सब बानर ये। निरखन्त तवानन सादर जे ॥ धिम' जीवन देव सरीर हरे। तव अक्ति बिना भव भूलि परे ॥६॥ हे प्रभो ! ये सब वानर कृतार्थ हैं, जो आदर-पूर्वक आप के श्रीमुख का अवलोकन करते है। हे भगवान् ! देव शरीर के जीवन को धिक्कार है, जो आप की भकि के विना संसार में भूल कर पड़े हुए हैं nan