पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०४२

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षष्ठ लोपान, लडाकाण्ड । बिचलाइ दल बलवन्त कोसन्ह, घेरि पुनि राबन लियो। चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि लिदारि तनु ब्याकुल कियो ४२६॥ जो भीषण बन्दर और भालू विकराल पर्वत ले कर दौड़े, वे अत्यन्त क्रोधित होकर नोट मारते हैं जिससे राक्षस भाग चले। बलवान बन्दरों ने राक्षलीदल को तितर बितर कर के फिर रावण को घेर लिया। चारा लोर से थप्पड़ मार मार नखों से शरीर फाड़ कर उसे विकल कर दिया ॥२६॥ दो०-देखि महा मर्कट मबल, रावन कीन्ह विचार । अन्तरहित होइ निमिष मह, कृत माया विस्तार ॥१०॥ अत्यन्त पली पार बन्दरों को देख कर रोवण ने विचार किया, (इस तरह पारन मिलेगा तय वा ) अन्तर्धान हो कर क्षण माम में भागा का फैलाव किया १९०० तोलर-जान्ह । जब कीन्ह तेहि पाखंड । अये प्रगट जन्तु प्रचंड । बेताल भूत पिसाच । कार घरे धनु नाराच ॥१॥ जय उसने पाखरह किया, तब इरावने जीव प्रकट हुए । पेताल,भूत और पिशाच हाथों में धनुष-बाण लिए (झुण्ड के झुण्ड देख पड़ते ) हैं ॥१॥ जोगिनि गहे करनाल । एक हाथ मनुज-कपाल । करि सच सानित पान । नाचहिँ कहिँ बहु गान ॥२॥ योगिनिया एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में मनुष्य की खोपड़ी लिये हुए ताज़ा खून पा कर बहुत तरह नाचती और गान करती हैं | धरु मारू . बालहि घोर । रहि पूरि धुनि बहुँ और । मुख बाइ. घावहिँ खान । तब लगे कीस 'परान ॥३॥ पकड़े, मारो, रावनी बोल बोलते हैं, यही आवाज़ चारों और भर रही है। मुख फैला कर खाने दौड़ते हैं, तब बन्दर पराने लगे ॥३॥ जह जाहि मर्कट भागि। तह धरत देखहि आगि। भये बिकल बानर मालु । पुनि लाग बरषद बालु ॥१॥ बन्दर जहाँ भाग कर जाते हैं वहाँ जलती हुई श्राग देखते हैं। पानर-मालू व्याकुल हो गये, फिर बालू बरसाने लगा ॥४॥