रामचन्द्रिका सटीक । तोटकछंद ॥ तब पायन जाय भरत्थ परे । उन भेटि उठाइ के अंक भरे॥ शिरसूधि विलोकि बलाइ लई । सुत तोबिन या विपरीत भई ७ भरत-तारकछद ।।सुनु मात भई यह बात अनैसी । जुकरी सुतगर्तृविनाशिनि जैसी॥ यह बात भई अब जानत जाके । द्विजदोष परै सिगरे शिरताके जिनके रघुनाथ विरोध बसैजू । मठधारिन के तिन पाप असैजू ॥ रस राम रस्यो मन नाहिंन जाको। रण में नित होइ परा. जय ताको ६ कौशल्या।। जनि सौंह करो तुम पुत्र सयाने। अति साधुचरित्र तुम्हें हम जाने ॥ सबको सब काल सदा सुखदाई । जिय जानति हौ सुत ज्यों रघुराई १० चेवरी छद । हाइ हाइ जहां तहां सब ढरही सिगरी पुरी धाम धामनि सुंदरी प्रकटीं सबै जे हुती दुरी ॥ लैगये नृपनाथ को सब लोग श्रीसरयूतटी। राजपनि समेति पुत्रिनि विष लाय गढीरटी ११॥ ५१६ लघुको शिर सुधियो बड़ेनकी मीति रीति है रोग मलाइ लीवो | स्त्रीनको प्रसिद्ध है ७ । ८ शिव श्रादि देषन के मठकी जे पूजा लेल हैं ते मठधारी कहावत हैं रस कहे प्रेम " अङ्गारादौ विषे वीर्ये द्रवे रागे गुणे रसः इत्यमरा" रस्यौ भीज्यौ युक्त इति । १० विमलाप जे हैं अनर्थ वचन अथवा कैकेयीप्रति विरोधवचन तिनकी गढ़ी कहे समूह रदी कहत भये कि कैकेयहीं के करत ऐसो विघ्न भयो तासों याको मुख देखिवो उचित नहीं है इत्यादि वचन सब कहत है "विप्रलापो विरोधोक्तायनर्थकवचस्यपि इत्यभिधात्तचिन्तामणि" ११ ॥ सोमराजीछंद ।।करी अग्नि पर्चा। मिटी प्रेतचर्चा || सबै राजधानी ।' भई दीनबानी १२ कुमारललिताछंद। क्रिया भरत कीनी वियोगरमभीनी॥मजी गति नवीनी। मुकुंदपदलीनी १३ तोटकछंद । पहिरे बकलासुजटापरिक।
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