पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/९७

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रामचन्द्रिका सटीक। अथवा अजलि को जल है लासम प्रतिदिन दूनों क्षीण होत हैं ४२ ॥ अन्यच्च ॥ एक कहें अमल कमलमुख सीताजूको एक कहें चन्द्रसम आनंद को कदरी । होइ जो कमल तौरयनि में न सकुचैरी चन्द्र जो तो वासर न होइ युति मदरी ॥ वासरही कमल रजनिहीमें चन्द्रमुख वासहू रजनि रवि राजै जग बदरी । देखे मुख भावै अनदेखेई कमल चंद तात मुख मुखै सखी कमले न चदरी ४३ दोहा ॥ सीतानयन- चकोर सखि रविवंशी रघुनाथ ॥ रामचन्द्र सियकमलमुख भलो बन्यो है साथ ४४ विजयचंद ॥ बहु बाग तड़ाग तरंगनि तीर तमालकि छह विलोकि भली। घटिका यक बैठतहें सुखपाय बिछाय तहां कुशकाश थली ॥ मगको श्रम श्रीपति दूरि करें सियको शुभवाकल अंचल सों। श्रम तेऊ हरै तिनको कहि केशव चंचल चारु हगंचल सो ४५ सोरठा॥ श्रीरघुवर के इष्ट अश्रुवलित सीतानयन ॥ सांची करी अदृष्ट झूठी उपमा मीनकी ४६ ॥ तीसरी स्त्री दुर्गाको मत खंडि आपनों कहति हैं कमलचन्द्रके देखेह पर मुख भावत है औ कमलचन्द्र मुखके अनदेखेही भावत है जब या मुखको देखो तष कमलचन्द्रके देखिबेकी इच्छा नहीं होति जब उत्तम वस्तु देखो तब अनुत्समवस्तु देखें अच्छी नहीं लागति है ४३ सूर्य को श्री चकोर को श्री चन्द्रको श्री कमल को स्वाभाविक विरोध है सो इहां भलो कहे अद्भुत साथ धन्यो है ४४ इंगचल दृगकोर. ४५ श्रीरघुवरके इष्ट कहे मिय अश्रु आनंदाशु करिकै चलित युक्त जे सीता के नयन हैं तिन मीनकी जो झूठी उपमा अदृष्ट रही है ताको सांचीकरी अर्थ मीन जलमें रहते हैं नयन जल में नहीं रहत समता में यह भेद रही है सो आनदानु जल में धूड़िके सीता के नयन सांची करी ४६ ॥ दोहा॥ मारग यो रघुनाथजू दुख सुख सबही देत ॥ $