रामचन्द्रिका सटीक। वननाथ २६ वृतविलंबितछद ॥ विपिनमारग राम विरा- जहीं । सुखद सुदरि सोदर भ्राजहीं ॥ विविध श्रीफल सिद्धि मनो फल्यो। सकल साधन सिद्धिही लै चल्यो ३० दोहा ॥ राम चलत सबपुर चल्यो जहें तहँ सहित उछाह ।। मनो भगीरथ पथ चल्यो भागीरथी प्रवाह ३१ चचलाछंद।। रामचन्द्र धातेचले सुने जबे नृपाल । बात को कहे सुनै सो गये महाबिहाल ॥ ब्रह्मरध्र फोरि जीव योंमिल्यो विलोकि जाइ । गेह चूरि ज्यों चकोर चन्द्रमै मिलै उड़ाह.३२ ॥ उरगौ कहे बिताको अथवा हे भाई ! जो भरत तुमको दुस्ख देहि तौ ले कहे अंगीकार करिकै घरमें गुनौ अर्थ समय पाय ताको फल देयके लिये समुझिराखौ गौ यह बात सुनौ अर्थ गौकी जो यह बात है सो सुनी २८ यामे या जनायो कि जो मैं इहो रहिवोऊकरों जीव तुम्हारे संग जैहै R | विपिन कहे वन भ्राजहीं कहे शोभही विविध कहे अनेकप्रकारकी श्रीफल कहे शोभाफलकी जो सिदि कहे वृद्धि है "सिद्धिःस्त्री योगनिष्पत्तिपादुका तार्द्धिवादिषु इति मेदिनी" तासों फल्यो जो सिद्धि है सिद्धति शेष सफल | साधन कहे ध्यानादि श्री सफलासद्धिहि कहे अणिमादिकनको लैकै चस्यो है नौ जपं योगते पड़ी शोभा को प्राप्त सिद्धरूप रामचन्द्र हैं सकलसाधक रूप लक्ष्मण हैं अष्टसिद्धिरूप सीता हैं औ कहू सिद्धि मनो फल्यो पाठहै सो अर्थ खुल्यो है ३० उछाह जो आनद है तेहिते सब पुर चल्यो कहे | सब पुरवासी चले तो या जानो पुरी में उछाहहू रामही के साथ चलो गयो ३१ गेहु कहे पिंजरा ३२ ॥ चित्रपदाबद ॥ रूपहि देखत मोहें। ईश कहौ नर कोहें। संभ्रमचित्त अरूमे। रामहिं यों सब बूझै ३३ चंचरीछद ।। कोन हो कितते चले कित जातही केहि कामजू । कौन की दुहिता बहू कहि कौनकी यह वाम ॥ एक गाउँ रहो कि साजन मित्र बधु बसानिये । देशके परदेश के किधो पथकी
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/९२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।