८७ रामचन्द्रिका सटीक। धीर जो योधा है तिनको सँभारिये यह भलो लागत है अर्थ अनेक वीरन को सँभारियो एकत्र करियो अथवा सावधान करिवोई भलो लागतहै यह कहि या जनायो कि यह तुम्हारो विपत्ति को समय है तासों तुम्हारे सग हमको चलिषो विशेष है २५ ।। लक्ष्मण-सुप्रियाछंद ॥ वनमहँ विकट विविध दुख सु- निये । गिरिगहर मग अगम के गुनिये ॥ कहुँ अहि हरि कहुँ निशिचरचरहीं । कहुँ दवदहन दुसहदुख दहहीं २६ सीताजू-दंडक ॥ केशवदास नींद भूख प्यास उपहास त्रास दुखको निवास विष मुखही गयो परै । वायु को बहन दिन दावाको दहन बड़ी वाड़वा अनलज्वाल, जाल मे रह्यो परै ॥ जीरनजनम जात जोर ज्वर घोर परिपूरण प्रकट परिताप क्यों करो परे । सहिहौं तपन ताप पति के प्रताप रघुवीर को विरह वीर मोसों न सह्यो परै २७॥ दवदहन कहे दावाग्नि २६ दुःखको निवास जो विष है सो मुख में गो परत है अर्थ विष खायो जात है जीर्ण कहे जर्जर 'अर्थ थोड़ी है मर्यादा जाकी ऐसो जो जन्म है सो जातु कहे जाउ अर्थ कि मृत्यु होय |ौ पोर जो ज्यर है औ परिपूर्ण कहे दैहिक दैषिक भौतिक तीनों प्रकार की जो परिताप है कैसी परिताप कि क्यों को परै अर्थ जो काहू विधि सों नहीं कहोजात अति बड़ो इति ये सब पतिके प्रतापसों सहिहों जो पर के प्रताप पार होय तो पर जे शत्रु हैं तिनके प्रताप सहिहौं अर्थ शवकृत दुःख सहिडौं २७ ॥ राम-विशेषकछद ॥ घाम रहो तुम लक्ष्मण राजकि सेव करौ । मातनि के सुनि तात सो दीरघ दुःख हरौ ॥ पाइ भरत्थ कहाघों करें जिय, भाय गुनौ । जो दुख देह तो ले गौ यह बात सुनौ २८ लक्ष्मण-दोहा ॥ शासन मेटी 'जाय क्यों जीवन मेरे हाथ ॥ ऐसी कैसे बूझिये घर सेवक
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