पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/८५

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रामचन्द्रिका सटीक । ८१ राजति है अनुरागरेंगी १२ नीलनिलोचन को पहिरे यक चित्तहरे । मेघनकी युति मानहु दामिनि देहधरे ॥ एकनके तन सूक्षम सारिजरायजरी । सूरकरावलिसी जनु पझिनि देहधरी १३ तोटमछद ॥ बरले कुसुमावलि एक धनी । शुभ शोभन कामलतासि वनी॥ बर फल' फूलन लायक की। जनु हैं तरुणी रतिनायककी १४॥ की जयसंयुत कीर्ति है जय सम गेह है कीर्तिसम स्त्री है की पतिके विष्णु के मंदिर में श्रीलक्ष्मी है की मनरोचन कहे सुदर अनेक मेरु सुमेरुपर | स्वर्णलता हैं रोचति कहे नीकी लागति हैं लोचननकी ११ मानों च द्रया | के मनको चांदनी मोहती है चन्द्रसरिस दर्पण है चादनीसरिस चंदनचर्चित | स्त्री हैं नयन हैं विशाल जिनक ऐसी जे स्त्री हैं तिनके अवर वन लालनकी | शोभा जगी है रागिनी सम स्त्री हैं अनुराग प्रेमसम वस्त्र है प्रमका रगअरुण है १२ मेघश्रुतिसम श्याम वस्त्र हैं दामिनी सम स्त्री हैं पगिनी कमलिनासम स्त्री हैं सूरकरावलि सम जरायजरी सारी हैं १३ फल पूगीफलादि १४ ॥ दोहा ॥ भीरभये गजपर चढे श्रीरघुनाथ विचारि ॥ तिनहिं देखि बरणत सबै नगग्नागरी नारि १५ तोटक छंद ॥ तमपुज लियो गहि भानु मनो। गिरिग्रंजन ऊपर सोम भनो । मनमत्थ विराजत शोभतरे । जनु भासत लोभहि दान करे १६ मरहट्टाछद ॥ मानद प्रकासी सब पुरवासी करते दौरा दौरि । आरती उतारें सरवसवारें अपनी अपनी पौरि॥ पढिमत्र अशेषनि करि अभिषेकनि आशिषदै सविशेष । कुंकुमकर्पूरनि मृगमदचूरनि वर्षतिवर्षा वेश १७ भाभीरछद ॥ यहि विधि श्रीरघुनाथ।गहे भरतको हाथ ॥ पूजत लोग पार गये राजदरबार १८ गये एकही बार। चारौ राजकुमार ॥ सहित बधूनि सनेह । कौशल्या