७७ रामचन्द्रिका सटीक । अाशिषरस भीने सब सुख दीने अब दशकंठहि मारो ५३ दोहा । सोवत सीतानाथके भृगुमुनि दीन्हीं लातभृगुकुल पतिकी गति हरी मनो सुमिरि वह बात ५४ मधुभारछद ।। दशरथ जगाइ । सभ्रम भगाइ ॥ चले रामराइ । दुंदुभि बजाइ ५५ ताड़कातारि सुबाहुसॅहारिकै गौतमनारिके पा- तक टारे । चाप हत्यो हरको हसिकै सब देव अदेवहुते सब हारे। सीतहि ब्याहि अभीत चल्यो गिरिगर्वचढ़े भूगुनंद उतारे। श्रीगरुड़ध्वजको धनु लै रघुनंदन औधपुरी, पशु धारे ५६ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्री- रामचन्द्रचन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां परशु- । रामसवादवर्णनंनाम सप्तमः प्रकाश ॥७॥ ५२ सब से देव ऋषि आदि हैं तिनको सुख दीने अब दशकंठको मारी ऐसी जो परशुरामकृत आशिष है ताके रसमें भीने ५३ । ५४ परशुरामके भयसो मूर्छा को प्राप्त जे दशरथ हैं तिनको जगाइ कै श्री परशुराम हारि के गये यह कहि सभ्रम भगाइकै ५५ ॥ गर्वके गिरिपर चढ़ेरहे नासो उतारचों अथवा गर्वका गिरि सोई परशुराम पर पड़ो रहै सो उतारयो । इति श्रीमजगजननिजनकजानकी जानकी जानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मिताया रामभक्तिप्रकाशिकाया सप्तमः प्रकाशः ॥७॥ दोहा । यह प्रकाश अष्टम कथा अवधप्रवेश बखानि । सीता वरण्यो दशरथहि और बंधुजन मानिए सुमुखीचंद ।। सब नगरी बहु शोभरये। जहॅ तह मंगलचार ठये। बरणत हैं कविराज वने । तनमनवृद्धिविवेसने २ मोटनकछद ॥ ऊंची बहुवर्ण पताक लसें । मानो पुरदीपतिसी दरसे | देवी गण व्योम विमान लस ।। शोभे तिनकं शुभ अचलसे ३
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