७६ रामचन्द्रिका सटीका कहा करिही अर्थ कहा कियों चाहत हौ अर्थ इनको प्रभाव लोप कियो, चाहत हो तुम से ही पालकताही में देव श्री देव तुमको डरे हैं ४२ ॥ श्रीराम-पट्पद ॥ भगन भयो हरधनुषशाल तुमको अब शाले । वृथा होइ विधि सृष्टि ईश पासन तेचाले । सकल, लोक सहरहुशेष 'शिरते धरडारो। सप्त सिंधु मिलि जाहिं होहि सबहीं तम भारो॥अतिश्रमलज्योति नारायणी काही केशव बुड़िजाहि बरु । भृगुनद सॅभारु कुठार में कियो शरा- सन युक्त शरु ४३ स्वागता छदः ॥ राम राम जब कोप कसी (जू। लोकलोक भयंभूरि भयो जू ॥ वामदेव तब श्रापुन श्रा' थे। राम देव दोऊ समुझाए ४४ दोहा ।। महादेव को देखि कि दाऊराम विशेष। कीन्हों परमप्रणाम उन आशिषदियो, अशेष ४५ महादेव-चतुष्पदी ॥ भृगुनंदन सुनिये मन' मह गुनिये रघुनंदन निर्दोषी । जनिये अविकारी सबसुख- कारी सेवही विधि संतोषी। एकै तुम दोऊ और न 'काऊ, एकै नाम कहायो । आयुर्बल खूट्यो धनुष जो टूट्यों में तन मन सुख पायो ४६ पद्धटिकाछद् ॥ तुम अमल अनन्त अनादि, देवी नहिं वेद बखानत सकलभेव ॥ सबको समान, नहिं पैर 'नेह । सब भक्तन कारण धरत देह ४७॥ जब गुरु जे विश्वामित्र है। तिनकी निंदा करयो तब, रामचन्द्र "कोप करिक घोले ईश महादेव श्रासन योगासन से चाले कहे चले सपही कहे सर्वत्र अर्थ चौदही लोक में ४३१-४४ ॥ ४५ निर्दोषी हैं अर्थ धनुष सूरने में इनको ए शेप नहीं है और मामा कार हा है यासों ग जनायो का हर INTR. मागी पारा जनायो कि इनके कडू । नाना या पार ४६ है बन्द का अन्वय एक द गामा,
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