५ रामचन्द्रिका सटीक । भई है अर्थ काहूकी नहीं भई देवता बृहस्पति आदि में प्रसिद्ध जे सिद्ध देवयोनि विशेष हैं अथवा भग आदि ऋषिराज वाल्मीक्यादि अथवा सिद्ध जे ऋषिराज हैं तपवृद्ध लोमश मार्कण्डेय आदि जाकी उदारताको कहि कहि कहे वर्णिवर्णिकै सब हारे हैं कहिकै सब उदारता काहू न लई कहे पाई अर्थ उदारता. .को अंत न पायो हारे यासों कह्यो कि अब नाहीं बखानत श्री भावी कहे जे हेहैं औ भूत जे लैगये वर्तमान जे हैं जगत् कहे जगके जे पाणी ते वखानत है सो केशवदास कहते हैं कि केहूं कहे काहू प्रकार सों काहू प्राणी सों उदारता न बखानी गई औ पति जे ब्रह्मा हैं ते चारि मुख सों औ पूत महादेव पांच मुखसों नाती स्वामिकार्तिक परामुखगों वर्णत हैं ताहूपर नई नई कहे नवीन नवीन रहति है अर्थ यह कि यहि प्रकार मुख वृद्धिसों वर्णत हैं परंतु इनको वर्णन जाकी उदारताको छुइ नहीं सकत अथवा ज्यहि वाणी के पति को चारिमुख औ पूतको पांचमुख नातीको | षण्मुख सब वर्णन करत हैं यासों या जनायो कि चारिमुख सों संपूर्ण | जगत् उत्पत्ति के कर्ता पंचमुख सों नाशकर्ता षण्मुख सों देवतन के रक्षक ऐसे पति पुत्र नाती हैं जाके यासों बड़ी बड़ाई जनायो औ ताहूपर नवीन नवीन होति जाति है २ और अर्थ जा मति सों वाणी जो सरस्वती है तासों जगरानी सीताजूकी उदारता बखानी जाइ ऐसी यति वाणी के कौन की कीन्हीं भई है अर्थ कौने ऐसी मति वाणी को दीन्हीं औ जा वाणी के पति पुत्रादि चतुरादि मुखसों वर्णत हैं और अर्थ एकही है अथवा सर- स्वती की उक्ति है कि वाणी जो मैं हौं तासों जगरानी सीताजूकी उदारता बखानी जाइ कहे जाति है काकु सों अर्थ यह कि मोसों नहीं बखानी जाति काहेते कि ऐसी कौनकी उदारमति भई है कि जो बखानै काहे ते कि देवतादि औ मेरे पति पुत्रादि सब वखानत हैं ताहूपर नई नई रहति है ऐसी सरस्वती को अथवा सीताजूको नमस्कार करत हौं इति शेषः यामें नमस्कारात्मक मंगल है २॥ अन्यच्च ॥ पूरण पुराण अरु पुरुषपुराण परिपूरण बतावें न बतावे और उक्तिको । दरशन देत जिन्हें दरशन समुझे न नेति नेति कहै वेद छोड़ि भेदयुक्तिको ॥ योनि यह केशो- दास अनुदिन राम राम रटत रहत न डरत पुनरुक्तिको।
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