रामचन्द्रिका सटीक । तुम बालक जानत कहा २५ राम-दोहा ॥ भगवतनसों जीतिये कबहुँ न कीने शक्ति ॥ जीतिय एकै बातमें केवल कीने भक्ति २६ हरिगीतबद ॥ जब हन्यो हैहयराज इन बिन क्षत्र क्षितिमंडल करेउ। गिरिबेध षण्मुख जीति तारक नदको जब ज्यों हरेउ ॥ सुत में न जायो रामसों यह कह्यो पर्वतनंदिनी।वह रेणुका तिय धन्य धरणीमें भई जग वंदिनी २७॥ सो बात कही जो तनों बनिभा भर्थ करत पनिपर यासों या जनायो कि जो कहत हो सो तुम का हमहू सो करिवेको दुर्लभ है २३ भरत कह्यो है कि घसत घसत चदनहू में पागि उठति है तासों परशुराम कहो कि अंग सों आगि उठावो सरस्वती जनार्थः कि हमारे सग परशुराम सों | रामचन्द्र लरिहैं यह जो रामचन्द्र पति तुम्हारो से कहे चोप है ताको छड़ाइ कहे त्यागिकै तुम हमका आपनी कन देखायकै रिझाद कहे प्रसन्न | करो अर्थ रामचन्द्रको भरोसो छोड़ि हमसो तुम लरौ तो हम लरै रामचन्द्र सो करिबे लायक हम नहीं है २४ । २५ । २६ जाँचनाम जे गिरि हैं ताके धनहार जे षण्मुख कहै स्वमिकालिक हैं तिनको जीतिकै तारकासुर को जो नद पुत्र है ताको ज्यों इत्यो माखो ऐसे २ इनके कृत देखिकै पार्वती को कि ऐसो पुत्र हमारे न भयो तब रेणुका परशुरामकी माता (जरावंदिनी भई भी धन्य भई ऐसे पराक्रम परशुराम के देखिकै रेणुका को सप जगवंदना करिकै कह्यो धन्य है रेणुका माके ऐसो पुत्र भयो या मकार रामचन्द्र परशुराम की स्तुति कियो २७ ॥ परशुराम- तोमर छंद॥ सुनु राम शीलसमुद्र । तव बं- चहै प्रतिक्षुद्र ॥ मम वाडवानलकोप । अबकियो चाहत लोप २८ शत्रुधन-दोधक ॥ हो भृगुनन्द बली जगमाहीं । राम,विदाकरिये घर जाहीं॥ हों तुमसों फिर युद्धहि माडौं। क्षत्रियवंशको वैर लै छाडौं २६ तोटकछंद ॥ यह बात सुनी
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