रामचन्द्रिका सटीक। परपराके शूर अथवा सूरज सूर्यवंशी ३ । ४।५।६ बांध्यो कहे मारयो सुत जो अगद है ताको पलना परसों अंक में लैकै ताको हित कौतुक रावण में ठाव्यो अर्थ रापण को बालखेल बनायो सो कथा प्रसिद्ध है बालको मक में लैकै कौतुक देखाइयो लोकरीति है छिद्रनि को डाढ़े कहे देखे अर्थ समय विचारि फै हैहयराम सहस्रार्जुन पै युद्ध करिबे को आयो हो पायो र अथवा जाको हैहयराज गहिलियो सो क्षुद्र छिद्रनि को दाढ़े अर्थ या समय जनकपुर में परशुराम नहीं हैं ऐसे अवसर को विचारि के आयो रहै ताके कंठ जो तू न फाटै तौ तोको कहा बड़ाई है अथवा ताके कंठन को जो तू फाटै तौ सोको कहाधड़ाईहै जाकी पालि आदि ऐसी दुर्दशाकरी ताको कंठ काटियो सहज है इति भावार्थः ७॥ सोरठा ॥ यद्यपि है अति दीन मोहि तऊ खल मारने ॥ गुरुअपराधहि लीन केशव क्योंकरि छोड़िये ८ चन्द्रकला छंद ॥ वरवाण शिखीन अशेषसमुद्रहिसोखि सखा सुख हम तरिहीं। पुनिलकहि प्रोटि कलंकितकै फिर पंककलंकहिकी भरिहौं । भल भूजिकै राकस खाक सके दुख दीरष देवन को हरिहौं। सितकठके कंठनको कठुला दशकंठके कठनका करिहौं । परशुराम-संयुताचद ॥ यह कौनको दल देखि ये। वामदेव ॥ यह रामको प्रभु लेखिबे ॥ परशुराम ॥ कहि कौन राम न जानियो । वामदेव ॥ शरताडका जिन मा- रियो १० परशुराम-विनय छंद ॥ ताडुकासँहारी तिय न विचारी कौन बड़ाई ताहि हुने । वामदेव ॥ मारीचहु ते संग प्रबल सकलखल अरु सुबाहु काहू न गने ॥ करि ऋतु रखवारी गुरु सुखकारी गौतम की तिय शुद्ध करी । जिन रघुकुल मंब्यो हर धनु खंब्यो सीय स्वयंवर मां बरी ११॥ जो ऐसी दीन है तो मारियो अनुचित है मालिये कहन हैं ८ शिखीन कई अग्निसों सखा सुगरको सम्मापा है मुखरी कहे सहजही ६।१०
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