रामचन्द्रिका सटीक । अर्थ मारयो तिन मुख जे आरण्यकांड औ किष्किन्धाकांड की कथा हैं तिनको ऋषिनकी विपतिहरणादि आरण्यकांड कथा जानौ आदि पदते सीयहरणादि जानौ नौ कलिवधादि किष्किन्धाकांड कथा जानौ आदि पदते सप्तताल बेधन सुग्रीव राज्याभिषेकादि जानौ औ क जो है अग्नि तासों लंकके जे अंक कही ध्वनादि चिह्न हैं तिन्हें दूरिकै बहे विध्वंस करिकै जारिक इति अर्थ हनुमान् के करसों लंका जारिकै दास जो विभीषण है ताके वपुष को आजु पर्यंत राखत हैं रक्षा करत हैं अर्थ | रावणादिको मारि जो विभीषण को लंकाको राज्य दियो तामें आजुलों रक्षा करन हैं तिन मुख कथन को हनुमान के करसों लंकादाहादि सुन्दर- कांडकी कथा जानौ औ रावणादि को वधकरि विभीषणको राज्यदानादि लंकाकांड कथा जानौ औ भरतको जो सांकर कहे नन्दीग्राम में यतीवेष वसिवेको कष्ट है ताही को जो सांकर कहे बंधन जंजीर है ताको जो नशन कहे नाश करिबो है अर्थ रामचन्द्र प्राइकै जो भरत के यतीवेष को क्लेश दूरि करयो है तेहि मुख कस है आदि दै औ ज कहे यज्ञ मुख कहे आदि दै अर्थ अश्वमेधादि जे मुख कहे मुख्य कथा हैं तिनको जोग कहे गीत है अर्थ कथन है ताको जे जो कहे देखत हैं अर्थ इन कथन सों युक्त रामच- न्द्रिका को जे पढ़त हैं तेही कहे निश्चय करिकै दशमुख मुख होते हैं अर्थ वकृत्व करिकै दशमुख के सदृश जिनको एक मुख होतहै बड़े वक्ता होत हैं । मयूरेग्नौ च पुंसि स्यात्मुखशीर्पजलेषु कम् ।। इति मेदिनी ॥ गंगीतं गातुगाता च गौश्च धेनुः सरस्वतीत्येकाक्षरीयजनेयः समाख्यातः इत्येकाक्षरी १॥ बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति कहौ धौ उदार कौनकी भई । देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तपवृद्ध कहि कहि हारे सब कहि न कहूं लई ॥ भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है केशोदास केहू न बखानी काहू पे गई । वर्षे पति चारिमुख पूत वणे पांचमुख नाती वर्षे पटमुख तदपि नई नई ॥ अंगरानी कहे जगमें श्रेष्ठ ऐसी जे वाणी सरस्वती हैं तिनकी उदारता बड़ाई जासों बखानी जाइ कहौ ऐसी मति बुद्धि उदार बड़ी कौने प्राणीकी
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