पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/६७

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६२ रामचन्द्रिका सटीक । सविशेख शुभ श्रीरये । शोधि जनु ईश शुभलक्षण सबै दये ५२ दोहा॥ ग्रीवा श्रीरघुनाथ की लसत कंबुवर बेख ॥ साधु मनो वच कायकी मानो लिखी त्रिरेख ५३ सुंदरीबद।। शोभन दीरघ बाहु विराजत । देवसिहात अदेवते लाजत ॥ वैरिनको अहिराज बखानहु । है हितकारिन की धज मा. नहु ५४ यो उर में भृगु लात बखानहु । श्रीकरको सरसी- रुह मानहु ॥ सोहति है उर में मणि यों जनु । जानकी को अनुरागि रह्यो मनु ५५ दोहा ॥ सोहत जन रतराम उर देखत जिनको भाग ॥ प्राइगयो ऊपर मनो अंतर को m अनुराग ५६ ॥ शुभ्र श्वेत सत्य कहे निश्चय जानी रूप सुदरताके अनुरूपक कहे प्रतिमा पखानियतहै अथवा जानो सत्य जो पदार्थहै ताके रूपके अनुरूपक मतिमा है सत्यको रूप श्वेत है ५२ कंबु शख मनसा वाचा कर्मणा करिके जो रामचन्द्र साधु हैं सिन तीनों की मानों विधाते तीनि रेखा लिखिदियो है निश्चय पातको रेखालांचि कहिवेकी रीति लोक में प्रसिद्ध है ५३ । ५४ रामचन्द्र के उरमें लक्ष्मी वास किये हैं ताके करको मानो कमज हैं मणि कौस्तुभ मषि अनुरागी मन सहश को सासों अरुण जानो ५५ वाही मणि की फेरि उत्प्रेक्षा करत हैं जन जे दास हैं तिनमें रत कहे संलग्न जो अनुराग रामचन्द्र के उरमें शोभित है सो बाठिकै पर अंतरते मानो ऊपर आइगयो है ताको जे देखत हैं तिनके बड़भाग हैं ५६ ॥ पद्धटिकाछंद ॥ शुभमोतिन की दुलरी सुदेश । अनु वेद- नके अक्षा सुवेश ॥ गजमोतिनकी माला विशाल । मनमा- नहु संतनके मराल ५७ विशेषकचंद ।। श्याम दुवो पग लाल लसे युति यों तलरी । मानहु सेवति ज्योति गिरा यमुना जलकी ॥ पाटजटी अतिश्वेत सो हीरनको अवली। देवन- दीकन मानहु सेवत भातिभली५८दोहा।। को वरणै रघुनाथ