पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/५८

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रामचन्द्रिका सटीक । सुदरी बेनु बीना बजावें। कहू किनरी किन्नरी लै सुगावै १३ कहूं नृत्यकारी न. शोभ साजै । कहू भांड़ बोलें कहू मल्ल गाजै ।। कहू भाट भाट्यो करें मान पावें । कहू लोलिनी बेड़िनी गीत गावें १४ कहू बैल भैसा भिरें भीमभारे । कहू एन एनीनके हेतकारे ॥ कहू बोकबांके कहू मेष शूरे । कह मतदन्ती लरें लोहपूरे १५॥ मागध पशावली वर्णन करैया सूत स्तुति करैया धारण प्रेष्य ये भाटकी जाति हैं शुभ अशुभ निधारण कहे शुभ में अशुभ के निवारण मेटनहार निष्ठमति कहे उत्तममति समिध होमकी लकरी १०।११ वासर के चौथे याम कहे तीनपहर दिन बीते के उपरांत दशरथ के धाम कडे मनवास | मंदिर में विदेह कहे जमकके गोत्री १२ तीनि छदको अन्धय एक है राजा दशरथकी फौजमें ऐसो कौतुक देखत भये फिगरी सारंगी, एनी हरिणीनसों | हेतकरि एन हरिण परस्पर भिरत हैं भिरत पदको अनुषंग एतहू में है मेष भेडा लोहपूरे जजीरहूको पहिरे अक्वा वीरतासों युक्त १३।१४।१५।। दोहा। आगे दशरथ लियो भूपति आवत देखि ।। राजराज मिलि बैठियो ब्रह्म ब्रह्मऋषि लेखि १६ शतानंद- शोभनाछंद ॥ सुनि भरद्वाज वसिष्ठ अरु जाबालि विश्वा- मित्र । सबै हो तुम ब्रह्मऋषि संसारशुद्धचरित्र ।। कीन्हो जो तुम या वंशपे कहि एक अंश न जाइ । स्वाद कहिले को समर्थ न गंग ज्यों गुरखाइ १७ अन्यच्च-सुखदाछंद ।। ज्यों अतिप्यासो पावै मगमें गंगजल । प्यास न एक बुझाइ बुझै त्रैतापमल ॥ त्यों तुमते हमको न भयो अब एक सुख। पूजे मनके काम जो देख्यो राममुख १८ ॥ राजर्षि दशरथादि राजर्षिजनकादिकनसी मिलिकै बैठे ब्रह्मर्षि वसिष्ठादि प्रापि शनानंदादिकनसों मिलिक मैं पिपरका अनुांग रागपदमहँ १ १६ रामार में शुद्ध है चरित्र जिनका अथाा ससारको शुद्धबनाई चरित्र