पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/५०

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रामचन्द्रिका सटीक। है कि दीपज्योति भवभूषण जो भस्म है तासों अर्थ गुनसों भूषित होति है औ यह भव जो संसार है ताके जे भूषण कुंडलादि हैं तिनसों नहीं भूषित | होति अर्थ इंडलादि धारण सुखमें नहीं लिप्त होति औ दीपज्योति में मपी जो मसि है कजलरतिसों लगति है अरु या गगादिसपी जो महिषी है सो नहीं बागति अर्थ गजादि आरोहन सुख भोगमें लिप्त नहीं होति आदि पदते रथासादि जानो औ दीपज्योति थलही में पूरण रहति है औ यह जलहू थल में परिपूरण है अर्थ जल थल में प्रसिद्ध है योगसों जीवन्मुक्त हैं ताशों राज्यसुखमें लिप्त नहीं होत इति भावार्थः २३ ॥ जनक-तारक ॥ यह कीरति और नरेशन सोहै। सुनि देव अदेवन को मन मोहै । हमको वपुरा सुनिये ऋषिराई। | सब गाउँ छसातककी ठकुराई २४ विश्वामित्र-विजय ॥ आपने अापने ठौरनि तौ भुवपाल सबै भुपालैं सदाई। केवल नामहींके भुवपाल कहावत हैं भुवपालि न जाई । भूपनिकी तुमहीं धरि देह विदेहन में कलकीरति गाई। केशव भूषणकी भवभूषण भूतन में तनया उपजाई २५ ॥ जा प्रकार तुम बरण्यो यह कीरति और बड़े राजन में सोहति है या लायक हम नहीं हैं २४ पतिको धर्म है स्त्रीसों पुत्र कन्या उपजाइवो सो भूमिरूपी स्त्री है तासों और काहू भूपति नहीं उपनायो तासों केवल नामहीं के भूपाल हैं भूपति की देह कोऊ नहीं धरे औ तुम भवसंसार में भूषणहूं को भूषण अर्थ जाते भूषण शोभा पावत हैं अतिसुंदरीति ऐसी तनया पुत्री भूतन पृथ्वी के तन देहते उपनायो तासों भूपनकी देह केवल तुमही घरेही औ ताहूपर तुम्हारी कल कहे निर्दोष कीरति विदेइनमें गाई है. कहावत विदेह हो यासों या जनायो कि भोगराज को करत हो यश जीवन्मुक्त तप- स्विन में गायो है याते तुमसम कोऊ राजा नहीं है २५ ॥ जनक-दोहा ॥ इहि विधिकी चित चातुरी तितको कहा अकत्थ ॥ लोकनकी रचना रुचिर रचिवको समरत्थ २६ सवैया ॥ लोकनकी रचना रचिबेको जहीं परिपूरण बुद्धि