पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/४८

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रामचन्द्रिका सटीक । आशिष सो ऋषि बासुलै दीने १९ विश्वामित्र-सवैया । केशव ये मिथिलाधिप हैं जगमें जिन कीरतिबेलि बई है। दान कृपान विघातनसों सिगरी वसुधा जिन हाथ लई है। अंग छ सरतकाठकसों भव तीनिहुँ लोकमें सिद्धि भई है। वेदत्रयी अरु राजशिरी परिपूरणता शुभ योगमई है २० ॥ घनश्याम रामचन्द्र औ सजेलमेघ जैसे सजल मेपन भागमो वृक्षन की दावाग्नि बुझाति है औ हरित लैजान हैं से बहुप काहूसों न उठ्यो अब सीता को ब्याह ना हैहै ऐसे गाड़ समयमों हम कछु सहाय ना कियो यह जासों कहै ताको आगि जनकादिके पुण्य क्षनगों हमारहै सो रामा- गमनसों धनुष उठिबो निश्चय करि बुझानी और फति उठे प्रफुल्लित है | उठे हरित है उठे १८ मुख्य जे सतानंद मदीने दिम ऋषि हैं ते राजाजनक को लीन्हें विश्वामित्र को श्रागे है लेवे को श्राप विस्थाभित्रको देखि दुवौ सतानंद औ जनक पायन में लीन भये विश्वामित्र शीश सूंधि आशिष दियो १६ विश्वामित्र रामादिसों जनककी बड़ाई करत हैं वेदत्रयी कहे तीनोंवेद ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद तिनके छ: अंगसों औ राजश्री के सात | अंगों औ योगके आठ अंगसों भव जो संसार है तामें तीनिहुँ लोक में जनककी सिद्धि कार्यसिद्धि भी है यासों या जनायो पडंगयुत वेद सप्तांग- युक्त राज्य अष्टांगयुक्त योगसाधन करतहैं वेदांगानि यथा-शिक्षा १ कल्प२ व्याकरण ३ निरुक्ति ४ ज्योतिष ५ छन्द ६ 'यथोक्तं पाबाशिकाय | भट्टोत्पलटीकायां-शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिपनिति" | राज्यांगानि यथा-राजा १ मन्त्री २ मित्र ३ खजाना ४ देश ५ कोट ६ | सैन्य ७ "स्वाम्यमात्यसुहृत् कोशं राष्ट्रदुर्गवलानि च । राज्यांगानीत्यमरः"। योगांगानि यथा-यम १ नियम २ आसन ३ मामायार ४ प्रत्याहार ५ ध्यान ६ धारणा ७ समाधि ८ "यथोच प्रबोधचन्द्रोपे-स्यनियमासन मामायामप्रत्याहारथ्यानधारणासमाधा" २०॥ जनक-सोरठा | जिन अपनो तन स्वर्ण मेलि तापमय अग्निमें ।। कीन्हो उत्तमवर्ण तेई विश्वामित्र ये २१ लक्ष्मण- मोहनछंद ॥ जन राजवंत। जग योगवंत । तिनको उदोत ।