४२ रामचन्द्रिका सटीक । फलफूलसों संयुक्त | अलि यों में जनमुक्त १६ राम- दोहा॥ तिन नगरी तिन नागरी प्रतिपद हंसकहीन ॥ जलजहारशोभित जहाँट पयोधरपीन १७॥ वारुणी पश्चिम दिशा औ मदिरा दिजराज चन्द्रमा श्री ब्राह्मण भगवंत सूर्य छौ ईश्वर संपत्ति चांदनी औ द्रव्य शोभा अंगछवि दुवौ में जानौ सूर्योदय सों पश्विमदिशा में शोभारहित चन्द्रबिंब देखि श्लेपोति सों वर्णन करचो जो प्रामण मदिरा की रुचि इच्छा करत है ताको ईश्वर संपत्यादि सो हीन करत है १५ चहुँभाग चारौ वीर मुक्व साधुजन १६ जो जनादेश गे ते नगरी पुरी औ ते नागरी स्त्री नहीं हैं जे प्रतिपद स्थान स्थान प्रवि औ चरण चरण प्रति हंसपक्षी औ क कहे जल श्री हंसक बिछु. वनसों हीन हैं औ जहां कहे जिनमें पीन बड़े पयोधर वापी तड़ागादि औ कुचन में जलन कमल श्री मोतिन के हारसमूह औ माला नहीं शोभित अर्थ सब नगरिनमें जलाशय जलयुक्त हैं तिनमें कमल फूले हैं औ हंस वसत हैं स्त्री मोतिन के माला नौ विलुवा पहिरे हैं यासों या जनायो कि विधवा नहीं है और अर्थ जो देश तिन नगरिन औ तिन नागरिनसों युक्त है युक्तेति शेषः। जिनके प्रतिपद को मगराम मार्मेति औ पग चित जे धूरि में अंकित होत हैं तेई इंसपक्षी औ क जल भौ बिछुवन करि हीन हैं अर्थ नगरिन में रामनार्ग छोड़ि अन्यत्र इंसयुज जल शोभित है नौ स्त्रिनके पगचितही में बिछुवा नहीं हैं भी पगन में सब बिछुवा पहिरे हैं औ जहँ कहे जिन नगरिन में श्री जिनमें शोभित न जलजहार न कमल समूह न श्री मोनी मालन सों युक्त पीन बड़े पयोधर तड़ागादि शौ कुच हैं १७ ॥ सवैया । सातहु द्वीपनके अवनीपति हारि रहे जियमें जव जाने । बीसबिसे ब्रतभंग भयो सो कहौ अब केशव को धनुताने॥शोककि ग्रागिलगी परिपूरण बाइगये घनश्याम बिहाने । जानकि के जनकादिक के सब फूलि उठे तरु पुण्य पुराने १८ दोधकछंद ॥ श्राइगये ऋषि राजहि लीने। मुख्यसतानँद विषप्रवीने ॥ देखि दुवौ भये पाँयन लीने।
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