रामचन्द्रिका सटीक । सिद्धी श्रीरये । वनजीव देखत यो सबै मिथिला गये ८॥ १ । २ जब धनुष काहसों न उठ्यो तब सबके जनकादि के मनमें दुचि- नाई भई कि सीताको ब्याह अब ना है है ता दुचिताई मेटिबेके लिये त्रि- कालदर्शिनी काह ऋषिकी स्त्री एक राजकुमार सीताके संग चित्रय लिखिफै ल्याई कि सीताको या प्रकार को बरु मिलिई आशय कि.जब या प्रकारको राजकुमार पावै तब शंभुधनुप चढाइकै सीताको ब्याहै ३ सो हे ऋषि ! जैसो इन राजकुमारको देखियतहै तैसोई बरु ऋषिकी स्त्री सीताको लिखि. न्याई ४ । ५ दुर्गति दुर्दशाको गई कहे प्राप्त भई ६ रूरे सुंदर ७ प्रतिशूर श्री सुन्दर दुबो राम लक्ष्मण ऋषिके साथ में ऐसे शोभित भये मानो सिद्धि जो तप सिद्धि है ताकी श्री शोभामें रमे कहे अनुरागे सिंह के सुत पुत्र हैं सिंहादि वनजीव तपस्विन के घश्य होत हैं यह प्रसिद्ध है श्री सिद्ध है श्रीरये पाठ होइ तो सिद्ध स्वाभाविक श्री शोभासौ रये युक्त ८ ॥ दोहा॥ काहूको न भयो कहूँ ऐसो सगुन न होत ॥ पुर पैठत श्रीरामके भयो मित्र उहोत ६ राम-चौपाई ॥ कछु राजत सूरज अरुण खरे । जनु लक्ष्मणके अनुराग भरे ।। चितवत चित्त कुमुदनी त्रसै । चोर चकोर चितासी लसै १० लक्ष्मण-पदपद ।। अरुणगात प्रति प्रात पद्मिनीप्राणनाथ भय । मानहुँ केशवदास कोकनद कोकप्रेममय || परिपूरण सिंदूर पूर केधों मंगलघट । किधों शक्रको छत्र मढ्यो माणिक मयूखपट ॥ के शोणितकलित कपाल यह किल कपालिका कालको । यह ललित लाल कैधौं लसत दिग्भा- मिनिके भालको ११॥ ६ प्रति अनुराग करि पुरमें पैठतही लक्ष्मणके सगुनार्थ उदित भये ताही अनुराग प्रेमसों मानो भरे कहे पूरित हैं अथवा लक्ष्मणको व्याजकरि स- गुन समय उदयसों आपने ऊपर सूर्य को प्रेम जनायो यह कहनूति लोक- रीति है १० पद्मिनीमाणनाथ सूर्य अरुणतामें तर्क है कोकनद कमलनको फुलावत हैं कोक चकवानको संयोगी करत तासों मानो तिनके प्रेममयी हैं अर्थ तिनप्रति जो प्रेम है सो ऊपर छाइ रह्यो है सिंदूरकी पूर प्रवाह
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